Neha Gulati   (नेहा गुलाटी सबरंग)
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Learner | Performer | Podcaster
Joined 18 November 2017


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Joined 18 November 2017
5 MAR 2022 AT 0:38

प्रेम की अपेक्षा न करते हुए भी प्रेम मिला
सम्बंध जब उपेक्षित हुए
तो प्रेम सहानुभूति के सांचे में ढल गया।

मुझे नाम व चेहरे याद रहें या न रहें
पर बोले गए शब्द कभी नहीं भूलते,
सुख में मिला प्रेम स्मृति में न मात्र है
दुख में मिली सांत्वना मन मे कील सी गढ़ी है।

मेरा अस्तित्व जिन्हें निराशावादी लगता है
वह मुझे कटुता से सींचते है,
मेरा आकर जिन्हें छोटा लगता है
वह मेरे भीतर से मुझे निकालने को तत्पर है।
मेरी,मेरे मैं होने की कोई उपलब्धि नहीं है।

समय के साथ,
मेरी दृष्टि में अवश्य कोई खोट आ गया है।
प्रत्येक कुर्सी के नीचे मुझे लोगो का झुंड दिखता है,
बिजली की तारों पर किताबें झूलती लगती है,
हर चश्मा तारक मेहता का चुराया लगता है ,
अखबार में छपे शब्द हवा में भटकते न्यूट्रॉन प्रोटोन प्रतीत होते है।

मैं जानता हूँ यह सारी त्रुटियां मन व मस्तिष्क की हैं,
पर इन उल जलूल बातों में देह का कोई रोल नहीं है।
मेरा यकीन करें,मुझे किसी बात का कोई गहरा दुख नहीं है
बस मेरी स्मृतियों में केवल विदायें है
यही मेरी कथा है।

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31 OCT 2021 AT 9:51

जीवन और पानी दोनों बहते अच्छे लगते हैं
दुख सुख ठेलते है जीवन को ज्यों नाविक हो
समय अदृश्य होकर देखता है सारी गतिविधियां
उसके पास भी विकल्प है जीवन की कैसेट को 1x या 2x पर देखने का
वह अक्सर दुख को 0.5x पर और सुख को 2x पर देखता है

कैसा खेल है पानी और समय अपनी इच्छा से बहते जाते हैं।

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30 OCT 2021 AT 11:13

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1 JUL 2021 AT 1:15

पहेलियों की तरह
खूब उलझे हुए धागों से
बंधी,घिसटती ज़ोर लगती
एक कोमल देह

स्वतंत्रता के नाम पर जिसे दी जाती हो
स से सांत्वना,सहानुभूति व संदेश,
जिस पर किया जाता है स से संदेह
छीन लिया जाता है स से सम्पूर्ण संसार
यहाँ स्वर व व्यंजन भिन्न उद्धरणों के साथ
प्रकाशित है कुछ एक मस्तिष्क में
अलग एक स्त्रिलिंगी वर्णमाला का
किया जिन्होंने अविष्कार
जो 21वीं शताब्दियों के वैज्ञानिकों
के लिए भी एक चुनौती है।

प से पंख नहीं
प से परिवार,हाँ
म से मैडल नहीं
म से मर्यादा
रटते रहो तोते की तरह बताई गई बातें
यह भूल गए कि
इनके सिखाये नियमों से हम भी
रच सकते अपने शब्द व वाक्य
शब्दों के विलोम खोज सकते हैं
ह से हौसला ,ब से बुलंदी व त से ताकत
ज जकड़न के अलावा ज ज़िद भी होती है
अल्जाइमर के शिकार ये लोग
रटाते रटाते खुद तोता बन चुके हैं
जो पिंजरे में कैद न होकर भी कैद है।

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1 JUN 2021 AT 20:28

सपनों के गर्भपात की पीड़ा
लिंग भेद का अंतर खत्म कर देती है
मस्तिष्क सपनों का गर्भ है
व स्वप्न भविष्य के बीजक हैं
और काल किसी जाति विशेष तक सीमित नहीं हैं।

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18 JAN 2021 AT 23:20

कितने ही रास्ते हैं मंज़िल को जाते
किसी एक को चुनना ही तो कला है
चुनाव जीवन की महत्वपूर्ण क्रिया है
जन्मोपरांत से कितने ही विकल्प
एक सर्विंग ट्रे में सजा कर रख दिये जाते है
सबसे पहला विकल्प शिशु को दिया जाता है
किस से करता है वह अधिक प्रेम माता या पिता
एक अबोध मन को बहलाना व
प्रेम को सीमित कर विकल्प बनाना सरल है
परन्तु प्रेम में स्वतंत्रता देना कठिन है
बाध्यताएं सदैव विकल्पों के विपरीत खड़ी रहती है

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14 JUL 2020 AT 16:38

तुम चुप हो और तुम्हारी चुप्पी
जंगल में फैले सन्नाटे सी है
सन्नाटा भी दोपहर का नही
जहाँ चिड़ियों की चहचहाहट
पशुओं की हुंकारों की ध्वनि
सूरज का सुखद ताप हो

तुम्हारी चुपी भयावह दृश्य है
रात्रि के जंगल का
विस्मयी आवाज़े,घूरता अंधेरा
भ्रमित करते जुगनू
तुम बोलो कुछ
नयी भोर के सूर्य के साथ
दिन का जंगल बन जाओ
चहचहाओ,तेज़ को भीतर भरो
रात के अंधेरे में जंगल में केवल
आदमखोर भेड़िये ही भटकते है
और मुझे भोर के चहकते पक्षी पसंद हैं।

नेहा गुलाटी

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10 JUL 2020 AT 12:41

"स्त्री एक विषयबद्ध कविता है"

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1 JUL 2020 AT 14:12

.....

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21 JAN 2020 AT 22:41

सलीके से बैठो,बात बात पर मत ऐंठो
कही इज़्जत का कचरा न कर आना
आवाज़ हो धीमी,मधुर सुरीली सी
चार किताबें पढ़ न तुम लड़ किसी से आना
याद रखो,तुम अच्छे घर की लड़की हो...

घड़ी की सुइयों संग ही तुमको
अपनी दिनचर्या की प्लानिंग करनी है
कब आना है कब जाना है
एक साथ ही सबकुछ तुमको निभाना है
याद रखो,तुम अच्छे घर की लड़की हो...

ये ही पहनो वो मत पहनो
ऐतराज़ हमे नही कोई हैं
तुम लोगो की नज़रो को तो समझो
छोड़ो इसे अरे ये पहनों
याद रखो,तुम अच्छे घर की लड़की हो...

ये भी सीखो वो भी सीखो
सब काम काज में माहिर बनो
तुमको कल दूजे घर जाना है
वहाँ जाकर के नाक नही कटवाना तुम
याद रखो,तुम अच्छे घर की लड़की हो...

अपनी इच्छा,अपने सपने
सबको दूजो को खातिर सूली टंगवाना है
तुमको ही तो हर फर्ज़ निभाना है
गौरांवित हमें जीवन भर करवाना है
याद रखो,तुम अच्छे घर की लड़की हो...

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