तुम्हारी यादों में
इस दिल की जुबां बोलती बहुत है, पढ़ो कभी,
आंखें भी मेरी अब, खुली हुई किताब हो गई हैं।
बैठे-बैठे झांकती रहती हूं बाहर, इन झरोखों से,
तुम्हें याद करते रहना, न छूटने वाली आदत हो गई है।
तुम्हें भूलना भी चाहूं, तो दिल रोक लेता है बहाने से,
वो एक मुलाक़ात हमारी, दिल के लिए आफ़त हो गई है।
मैं अब अकेली कहां हूं, तुम्हारी बातों ने मसरूफ़ रखा है,
तुम्हारे साथ होने के एहसास से हीं, मुझे राहत हो गई है।
इतना तड़पाना भी किसी को, अच्छी बात नहीं है,
आ जाओ, इंतज़ार की घड़ियां अब बेहिसाब हो गई है।
कमरे के अंधेरों को अच्छी लगने लगी है, ये थोड़ी सी रोशनी,
यूं ही ज़िन्दगी में भी उजाला हो जाए, ये चाहत हो गई है।
तुम्हारे दिए फूल की ख़ुशबू से, हर पल महकता है मन,
इश्क़ के मौसम में क्या कहें, हमारी क्या हालत हो गई है!
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