गुफ्तगू
आज कुछ गुफ्तुगू हो जाये
चिड़िओं की चेहचाहट से कुछ पहचान हो जाये
गायब थी वो कही पिछले कुछ दिन कहीं
गाडिओं की आवाज़ इसका कारण तो नहीं...
आज आई है कानों मे आवाज़ कोई मधुर,
चलों कुछ देर सुन लिया जाये
पहाड़ों की उन वादिओं से भी
आज फिर गुफ्तगू हो जाये...
दूर कहीं बादलों के पीछे
छुपे थे कहीं आप जनाब
आज कैसे नज़र आये हमें
ज़रा इसकी वजह फरमाए आप...
आसमान आज थोड़ा नीला है
इसकी वजह कहीं आप तो नहीं
वो काली चादर कहाँ गयी
इसकी वजह कहीं बीमारी तो नहीं...
जनाब थोड़ी हमारी तो सुनिए ना
हमसे थोड़ी गुफ़्तगू करिये ना...
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