दरफ़्तो से था एक रिश्ता हमारा जमीन उनकी थी और साया हमारा कोई तो पैरों की जंजीर बनाता कोई तो रोकता रास्ता हमारा ताल्लुक झूठ की बुनियाद पर था मगर वो इश्क सच्चा था हमारा अचानक मर गया किरदार कोई अधूरा रह गया किस्सा हमारा खड़े हैं मुट्ठियों में रेत लेकर हुआ करता था एक गढ़िया हमारा ।।।
रूह जानती है हदें अपनी, आतंक से पनपी खौफ की दहलीज पार करना, यकीन मानो इतना आसान नहीं; इदराक,सुकून सबसे जो रूखसत ली, कि खौफ से लिपट सी गई रूह ये, अब सच कहूं गर जो मजाक है; तो मजाक भी गवारा नहीं पर हैफ़ बन जाने में वजूद मेरा भी बाकी नहीं ।।।