Narendra Shandilya  
365 Followers · 15 Following

Joined 7 March 2017


Joined 7 March 2017
1 APR 2018 AT 16:30

कईसन जिनिगी जियले ये बबुआ
के मनवा के नाव अभियो डोलत बा
कहिया मिलिहैं उ बृह्म बाबा,
जउन कहत रहन कि इक दिन तहार मन ठीक होइ
कि एक दिन तुहू बृह्म हो जइबअ।

-


31 JAN 2018 AT 7:38

खिलखिलाती धूप का देख के पराग,
बन तितली उड़ चली ले अपना अनुराग,
जीवन कि कुछ जानो प्रियतम,
अमृत की परिभाषा मानो उत्तम

समृद्ध देश का मान,
कर्मयोगी का अभिमान,
इन का मोल लगाओ प्रियतम,
निर्धन को जन मानो प्रियतम


आने आवेश के वेश को
उससे पहुंचे मासूमो कि टीस को
माता की पूजा करो प्रियतम
बस जान न लो प्रियतम 

-


8 OCT 2017 AT 17:40

कुछ सालों पहले, मैं एक आशावादी मनुष्य था,
सबके कुशल मंगल की प्राथना करता था।
अब मैने, थोड़ी आशा बेचकर कर्म खरीद लिया है,
कुछेक के कुशल मंगल के लिए कर्तव्य करता हूँ ।

-


7 OCT 2017 AT 15:17

See, if you like him, what can I do!
And, if you don't like him, why should I worry!!

-


6 OCT 2017 AT 7:45



ना ना तू बुझत नईखु
हमरा में दुगो परदेशी रहेलन सअ
एगो छठ के घाट देख के, मइया के गीत सुन के रोएला,
त दुसरका ओहि दिन दिल्ली में हमार भाइयन के गलथेथराई देख के हिसके ला।
एहि परदेश में माई के लियावे खातिर रोइला,
आ माई आ जाले त ओकर जउन हाल होला ऐजा उ देख के हिसकीला ।
ये राम जी एहि जिनिगी में मुक्ति दिह,
ई परदेसी जिनगी के टीस से ।

-


6 OCT 2017 AT 7:30

मातृभाषा
ए माई,
ई मातृभाषा का होला रे,
जउन तू आ ईआ बोलेलीसन,
की जउन हमार लइका बोलेला।
कि जउन के सुन के मन हरियर होला, आ बोल के लाज
कि जउन के बोल के हम लाट साहब कहलाईं।
ए माई, कह ना रे ई मातृभाषा का होला

-


6 OCT 2017 AT 7:17

जो कर्म मै कर रहा हूँ,
जो पथ मै चल रहा हूँ,
उस कर्म, पथ और स्वयं की प्रसिद्धि,
मेरे स्वयं की अवहेलना है ।

-


20 JUL 2017 AT 22:54

I sit n stare the emptiness,
After an epoch,
I feel privileged
Of the conscience to feel
Of the time to think
Of the energy to stare
Of the courage to accept

Well, I am privileged
For majority of my brothers/sisters
Sit and bear the pangs of an empty stomach

-


23 APR 2017 AT 16:29

हाथ डाल के निकाल लाता मै,
इंसानियत जो मिलती अगर नजफगढ़ के नाले में।
कुछ के करमो में मिल जाती है,
कुछ की हलक में।
पर है बड़े सारे,
जिनकी मैं, मेरा, हम,
हमारे में ही फंस जाती है इंसानियत।

-


23 APR 2017 AT 16:18

दो दिन से तुम्हे देख रहा हूँ,
42 डिग्री का सनीचर और तुम,
रोज बकरी चरने जाती है, और पीछे पीछे तुम,
आंखों पे ये तर्कशास्त्र का चश्मा रोक लेता है बस,
नहीं तो इंस्टाग्राम और फेसबुक पे क्रांति ले आता मैं।

-


Fetching Narendra Shandilya Quotes