यदि आप समाज को सशक्त करना चाहते हैं, तो बस केवल एक कार्य है अपने शरीर और मन को सर्वप्रथम मजबूत बनाओ। क्योंकि वह व्यक्तित्व बनना होगा कि लोग आपसे मिलकर आनंदित महसूस करें। लोग आपकी बात सुने, ठहरे, ध्यान दें। आपका व्यक्तित्व देखकर उनमें गर्व की अनुभूति हो। तभी आपके प्रति सम्मान की दृष्टि होगी। शरीर को व्यायाम और ध्यान से तथा मन को अध्ययन से मजबूत बनाओ। खाली समय में सृजनात्मकता के लिए कविता पाठ, संगीत, नृत्य,कला आवश्यक है जो आपको आनंदित करेगी। प्रतिस्पर्धा आप केवल अपने लक्ष्य से जुड़े ऊंचे स्तर के लोगों से ही करें। लक्ष्य से इतर लोगों के साथ अपना समय अधिक न व्यर्थ करें, फिर वह चाहे आपके मित्र हो या रिश्तेदार। आपको सदैव ऊर्जावान रहना है। तभी कुछ संभव होगा। इन सबके जो विरोध में हो, या करने से रोकता हो उसे त्याग दो। यही अनुशासन आपको बदलेगा। बिना अनुशासन, नियम समय होने के बावजूद व्यर्थ हो जाएगा। केवल समय और शरीर ही बर्बाद होगा और ऐसा होने पर आप स्वयं को सज्जन, सीधा-साधा, उदासीन प्रवृत्ति का पायेंगे। फिर समाज में ही गलतियां और बुराइयां दिखाई देगीं और दुनिया जीने लायक नहीं लगेगी। आपको अन्य जन सामान्य लोग भी अहंकारी, दुष्ट और नालायक दिखाई देंगे। हालांकि यह सब अपनी कमजोरी के कारण होगा। संसार किसी भी स्तर पर कमजोर लोगों के लिए नहीं है। सारी कमियां खुद में ही है, दुनिया सारी बेहतर है।
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