वक़्त की खिड़कियों से रहा उम्रभर मैं झांकता और ज़िन्दगी सफर चली किसी लम्हें में ठहरा हुआ मैं सोचता रहा कि बढूं मिले जो कहीं पे कारवां मगर ये सोचना,गलत मेरा खड़ा में मंज़िल पे ही था और ढल रही थी शाम भी संग,चाँद,रात, उतर रहा थी उखड़ रही सांस भी मिट रही थी हर निशान वो आखरी बार थे लब हिले हाँ, वो आखरी,ही था,अलविदा वक़्त की खिड़कियों से रहा उम्रभर मैं झांकता
ना होते तुम तो क्या होता जीना मेरा ना होते तुम तो,फिर क्या ज़मीन क्या आसमान ना होते तुम तो दिल शायद धड़कता नहीं ना होते तुम तो,फिर क्या गलत और क्या सही ना होते तुम तो हर सफर की कहानी जुदा ना होते तुम तो क्या इबादत और क्या खुदा
जड़ से ही जीवन जुड़ा हुआ लगाए जीतना जोर हालात मगर हर हाल में जड़ है खड़ा हुआ और जड़ से ही बंधी है उम्मीदें हर उम्मीदों पे ये खरा हुआ की अपनी जड़ मजबूत करो जड़ से ही,टिकी हुई ये दुनिया
की, रूह तक उतर जाओगे चाहे जितनी भी हो दूरियाँ,दरमयान एक दिन, लौटकर आओगे हम उम्मीद रखतें हैं और यकीन भी इन्तेहा से पहले, निभाओगे की आपने वादा किया था अब वादे से मुकर नहीं पाओगे
तेरा मुझसे, हाथ छुड़ाने से पहले ए दिल,गम मुस्कुराने से पहले जिया होगा तूने भी,हर पल को दिल तोड़ने की रस्म,निभाने से पहले आया तू था,बाहों में,लिपटकर सुना आशियाना, बनाने से पहले शायद अब, हक नहीं, मेरा सितमगर यही आखरी अलविदा,हक जताने से पहले