कुछ बीच के जाते है उन बीच के दिनों को मैं "बचपन" की संज्ञा देती हूं । जहाँ सही,गलत अच्छे , बुरे का पता न चलता सब इतना ही सूंदर था जैसे सुदूर स्थित पेड़, पहाड़, मेरा गांव
कुछ स्त्रियों में से आती इत्र की खुश्बू कुछ स्त्रियां जो कभी बचपन छोड़ न पाई कुछ स्त्रियां जो कभी न निकल पाई घरों से कुछ स्त्रियां जो कभी न जता पाई अपनी नाराज़गीयाँ इन कुछ स्त्रियों में संसार समाहित है जैसे आप 💞