माना के युद्ध हुआ तो भीषण त्रासदी हुई
उजड़ गये शहर पूरे कई पीढ़ियाँ गयीं ,
मगर युद्ध ने ही तो बचायी सभ्यता कई ।
भला बिन युद्ध मिलते पांडवों को गाँव कितने
शांति की अभिलाषा में मिलते वनवास कितने
कितनी कुचल दी जाती द्रौपदी, होते दानव कितने
क्या होता अगर ना आती धनुर बिद्द्या अर्जुन
अगर युद्ध का मार्ग दिखाने ना आते मोहन ॥
हाँ मिटा दी गई कई हस्तियाँ भीष्म जैसी
बनायी गई एक सभ्यता ऐसी
जिसमे धर्म कुछ नये परिभाषित हुए
कुछ लड़े भूमि की ख़ातिर कुछ सत्यम जयते हुए ॥-२
क्या होता जो लड़े ना जाते युद्ध आज़ादी के कभी
शांति प्रिय इंसान खच्चर बनाये जाते शायद
या सर काटकर थाली में परोसे जाते शायद ।
युद्ध और शांति के भ्रमजाल में सदियाँ गयीं
अंतर्मन से युद्ध करती ये मानवता पूछती है
क्या होगा उस दिन जब जानवर लड़ेंगे
अपना युद्ध अपनी जन्म भूमि के लिये ॥
है ये युद्ध सर्वनाशी, सर्वहारी अंधकार है , हाँ आख़िरी है ये रास्ता
मगर मानवता का मानवता के लिए युद्ध ही सत्य है, युध ही सत्य है ॥
भावनाओं के भवर से - मोनिका सिंह ॥
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