Monika Singh   (Monika Singh)
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Research Scholar
Joined 12 October 2019


Research Scholar
Joined 12 October 2019
3 MAY AT 13:29

लिखते हैं पिछली सदी पर
इस सदी में कम बची ज़िल्लत है क्या

घूँघट घूँघट चिल्लाते हैं
बुर्ख़े में चलती लाशों से मोहब्बत है क्या

छुपा कर चल रही चेहरा
कहो कोई दिक़्क़त है क्या

उतार दिया घूँघट मैंने
कोई हर्ज नहीं जमाने को

तुम भी हटाओ ये हिजाब
कहो कोई डर है क्या

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28 APR AT 23:52

लिख दिया दिल तूने
कोरा काग़ज़ जो मिला ।
इस दिल की ना पूछ
जिसको कभी रहबर ना मिला ॥
है ख़्वाब भी और
गुलिस्ते भी हैं ख़्वाबो के ।
मिल गई मंज़िल मगर
सफ़र में मुसाफ़िर ना मिला ॥

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27 APR AT 0:55

क्यों ज़िंदगी हमेशा ख़ुशियों के साथ दुख इनाम में देती है
राह में चल रहे मुसाफ़िर को ठोकर मुफ़्त में देती है
है इल्म किसे इस बात का
क्यों ये ज़िंदगी इश्क़ करने वालों को सज़ा देती है।।

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24 APR AT 20:16

है इश्क़ तो बेबाक़ कहिए
भरोसे क़िस्मत के नहीं दिलदार छोड़े जाते ।
आँखों से होने लगें जब बातें दिलों की
फिर नहीं पत्थर से दिल तोड़ जाते ॥

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21 APR AT 23:44

उसकी याद से रिश्ता तोड़ा ग़ुस्से में
यूँ तो ये प्यार हमेशा एक तरफ़ा ही था
फिर भी उसकी बेरुख़ी से अपना दिल दुखाया ग़ुस्से में

ख़ुद को तड़पाया हमने बहुत रुलाया ग़ुस्से में
फ़ोन उठाया नंबर डाला और फिर नहीं मिलाया ग़ुस्से में
फिर भी उसकी चाह में आँशु छलकाया ग़ुस्से में

सबसे हमने राज़ छुपाया उसको मगर सबकुछ बताया
एक रोज़ उसी से मुँह मोड़ा हमने ग़ुस्से में
पर कलम ने साथ ना छोड़ा उसका फिर में ग़ुस्से में ॥

भूले बिसरे।

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23 MAR AT 1:24

नहीं चाहती मुझको चाँद का टुकड़ा बुलाये वो
गीत गाकर सुनाये और सुहावने सावन के सपने दिखाए वो।

हाँ मगर चाहिए हरगिज़ ही रोज़ एक चाय की चुस्की साथ में
जिसपर पूरे दिन की मेरी सारी उलझने सुलझाए वो
करे मुझसे अपनी सारी ही बातें
अपना दर्द अपनी कमियाँ मुझे बेझिझक बतलाये वो ।

नहीं चाहती मुझको महँगे तोहफ़ो से हसाये वो
लेजाये पेरिस और आइफ़ल टावर पर प्यार जताए वो ।

हाँ मगर हरगिज़ ही चाहिए मुझे साथ उसका
जब आँख में आंशू हो तो रूमाल उसका
वो खुश हो मेरी हर कामयाबी पर
वैलेंटाइन पर होटल भले ना लेजाये पर
अपने हाथो से खाना बनाकर खिलाए वो ।


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10 MAR AT 2:05

है कौन जिससे शत्रुता है
हर किसी से तो मैं भिन्न हूँ
और हर किसी से समानता है ।
शृंगार को भी लानत मिली
देखो फला लड़की कितना
मेक अप करती है
छोड़ा तो भी तोहमत मिली
देखो फला की बीबी कैसे
बिना चूड़ी बिंदी के चलती है ॥

है कौन किससे शत्रुता है
ये पुरुष मेरा दुश्मन अगर
मेरा बाप क्यों अपना सा है
जान छिड़कता भाई ये
बेटा तो बिलकुल मुझसा है ।
है कौन जिससे शत्रुता है
संघर्ष ये जीवन मेरा
शृंगार भी अपना सा है
ये चंचल मन यौवन भी मेरा
माँ का आँचल भी मेरा
और ममता का सागर भी मेरा
बूढ़ी दादी का ताना भी मेरा
वो नानी का घराना भी मेरा ॥

है कौन किससे शत्रुता है
ये संसार मुझमें मुझसा है
बाहर कुछ है जो मुझमें भिन्न सा है
ये जज्बात मेरा स्त्रीत्व मेरा
झांकता काली नज़र से
ये संसार जाने किसका है ॥

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26 FEB AT 22:31

सोचते थे चंद घड़ियाँ
अच्छी गुजरेंगी तुमसे मिलकर ।
हमें क्या पता था
ज़िंदगी भर तेरी यादें तड़पायेंगी हमे ॥

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31 JAN AT 2:51

माना के युद्ध हुआ तो भीषण त्रासदी हुई
उजड़ गये शहर पूरे कई पीढ़ियाँ गयीं ,
मगर युद्ध ने ही तो बचायी सभ्यता कई ।

भला बिन युद्ध मिलते पांडवों को गाँव कितने
शांति की अभिलाषा में मिलते वनवास कितने
कितनी कुचल दी जाती द्रौपदी, होते दानव कितने
क्या होता अगर ना आती धनुर बिद्द्या अर्जुन
अगर युद्ध का मार्ग दिखाने ना आते मोहन ॥

हाँ मिटा दी गई कई हस्तियाँ भीष्म जैसी
बनायी गई एक सभ्यता ऐसी
जिसमे धर्म कुछ नये परिभाषित हुए
कुछ लड़े भूमि की ख़ातिर कुछ सत्यम जयते हुए ॥-२

क्या होता जो लड़े ना जाते युद्ध आज़ादी के कभी
शांति प्रिय इंसान खच्चर बनाये जाते शायद
या सर काटकर थाली में परोसे जाते शायद ।

युद्ध और शांति के भ्रमजाल में सदियाँ गयीं
अंतर्मन से युद्ध करती ये मानवता पूछती है
क्या होगा उस दिन जब जानवर लड़ेंगे
अपना युद्ध अपनी जन्म भूमि के लिये ॥

है ये युद्ध सर्वनाशी, सर्वहारी अंधकार है , हाँ आख़िरी है ये रास्ता
मगर मानवता का मानवता के लिए युद्ध ही सत्य है, युध ही सत्य है ॥

भावनाओं के भवर से - मोनिका सिंह ॥

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24 JAN AT 14:23

तलवार भाले लेकर पहुँचे और काट दे दुश्मन का गला
उसी को युद्ध बोला गया, मानवता का अंत और सर्वनाश बोला गया ।
मैं मानवता आज पूछती हूँ सबसे वो लाचार पंक्षी कहाँ हैं
जिन्होंने कोई युद्ध नहीं लड़ा, कौन खा गया उनकी मानवता
जब कोई युद्ध नहीं लड़ा , क्यों उसे विलुप्त बोला गया ॥
मुझे जानना है युद्ध किसको बोलते हो तुम
जो है बलशाली, बाहुबली सिर्फ़ उसी को छोड़ते हो तुम
फिर बची मानवता कहाँ पहले ये बताओ तुम
अब तो वक़्त छोड़ा नहीं तुमने शांति का
युद्ध से हाँ रोयीं पीढ़ियाँ तुम्हारी मगर ये युद्ध तुमको लड़ना होगा
इस बार युद्ध बाहुबलियों का नहीं होगा
युद्ध होगा हर मानव का मानवता के लिए स्वयं से
युद्ध होगा संभाव का , युद्ध होगा स्वाभिमान का
युद्ध भी उतना ज़रूरी जितना ज़रूरी होगा हर रात के बाद जागना ।

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