Mohsin Mannat   (मोहसिन)
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Joined 10 February 2020


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Joined 10 February 2020
16 DEC 2023 AT 7:57

हर सिम्त लुटेरों की फ़ौज बहाल है नया- नया।
फसने- फसाने को जाल है नया- नया।
चेहरे पे चेहरा और खाल है नया- नया।
बचने- बचाने को ढाल है नया-नया।
ज़ुल्म को जलाने की मशाल है नया-नया।
जश्न और जीत की चौपाल है नया- नया।
इन्साफ की दहलीज पर द्वारपाल है नया- नया।
साज पुराना है मगर ताल है नया- नया।
शतरंज के मोहरे पास चाल है नया- नया।
तलवार पुरानी है लेकिन म्यान है नया- नया।

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25 JUL 2023 AT 20:03

पल पल बदलते हैं ये रिश्ते
हर पल बदलते हैं ये रिश्ते
टूटते-बिखरते हैं ये रिश्ते
गिरते-संभलते हैं ये रिश्ते
ज़ख्मों को कुरेदते हैं ये रिश्ते
लहूलुहान करते हैं ये रिश्ते
सुई की नोक पर टिकते हैं ये रिश्ते
पैसों के दम पर बिकते हैं ये रिश्ते

साजिश रचते हैं ये रिश्ते...
फिर भी बदस्तूर चलते हैं ये रिश्ते
इन झुठे रिश्तों से अदावत है मुझे
नफ़रत है, ख़लिश है, तहरीक-ए-बग़ावत है मुझे

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14 MAR 2023 AT 23:19

मैंने तुम्हें ढूंढा है
इंकलाबी नारों में
संघर्ष की लंबी कतारों में
मेरे अश्कों से बहती धारों में ‌
तपती धूपो में, लहलहाती बहारों में
गांव की गलियों और चौबारों में
मायावी महानगरीय बाज़ारों में
इस्कॉन के मंदिरों में सूफियों की मजारों में
होली के ख़ुबसूरत रंगों में ईद की नमाजो में

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10 MAR 2023 AT 9:50

पूजा का शंख मैं
सुबह की अज़ान तुम
नासमझ हूँ मैं थोड़ा
थोड़ी नादान तुम
व्रत रखता मैं तुम्हारे लिए
मेरे लिए रमज़ान तुम
सपनो की ऊँचाई पर जाना है
मेरे लिए परवाज़ तुम
मन्नत का धागा मैं
शुकराना की नमाज़ तुम
ना मैं करता ज़ोर ना तुम ज़बरदस्ती
निराकार मानता हूँ मैं
तुम्हें भी नहीं पसंद बुतपरस्ती

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6 MAR 2023 AT 23:50

हां देखता हूं मैं...
सड़कों पर पड़े, कचरे में सनी
बदबू में बजबजाती गुहारों को

हां सुनता हूं मैं...
अन्तरहृदय से उठे उस पुकार को
जो कृष्ण तक पहुँच न सकी
हाँ चुपचाप सहता हूँ मैं
अस्मत पर होती चोटों को
ईमान खरीदते नोटों को

हां कहता हूं मैं...
कलेजे में उठे गुब्बारों को
मन में सुलगते अंगारों को
पर कुछ कर नहीं पाता

और फिर कोसता हूँ मैं
खुद के सारे संस्कारों को
समाज के सारे ठेकेदारों को
क्या वीरता और साहस की नदी
मुझको भी नीर पिलाएगी
क्या मेरे हाँथों से कभी कोई
चुनरी, आँचल और वो मुस्कान खिली बच पाएगी

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5 MAR 2023 AT 13:28

हम उन्हीं कबीलों में तब्दील हो चुके हैं..
जिन कबीलों से हमारी उत्पत्ति हुई थी।
और कबीले इंसाफ नहीं करते
केवल बदला लेते हैं।

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4 MAR 2023 AT 1:43

तुम चीखो तुम ही चिल्लाओ
सब को जा जाकर बतलाओ
पर मेरे कान ना खाओ तुम
बेमतलब ना गुर्राओ तुम

ये मेरा देश है इस से मैं
चुपचाप मोहब्बत करता हूँ
अपनो की जहालत से इसकी
हर रोज़ हिफ़ाज़त करता हूँ
तुम पहले जाहिल नहीं हो जो
कहते हो चीख के प्यार करो

इतना गुस्सा है तो अपने
चाकू में जा कर धार करो
और लेकर आओ घोंप दो
वो चाकू मेरी पसली में
ग़र ऐसे साबित होता है
तुम असली हो और नकली मैं

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4 MAR 2023 AT 1:24

यहां कातिल बने हैं सब
यहां शराफ़त की जगह नहीं
यहां शोर मचा है हर गली में
यहां चेहरे पर हंसी नहीं

यहां दर्द में चीख रहा है हर कोई
फिर भी क्यों गुरूर है?
यहां घर पड़े हैं सारे खाली
यहां अपने बहुत दूर हैं

~ मोहसिन

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12 FEB 2023 AT 21:13

जला है दीप मगर हर तरफ अंधेरा है
जहां चाँदी की चमक वहीं सवेरा है
लोग महफूज़ नहीं है आज अपने ही घर में
रिश्तों के दरमियान छुपा कई लुटेरा है
सफ़र आसान है फिर भी जागते रहना
बारूद-ओ-बम के ठिकानों पर आज बसेरा है
कैसा करिश्मा है कुदरत का यह भी ज़रा देखो
गूंजती सांपों की धुन में नाचता सपेरा है

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29 JAN 2023 AT 0:32

कमज़ोर लोग रहते हैं
मज़बूत तालों के पीछे
जाने कितनी अंधेरी रातें मरती है
इन उजालों के पीछे

कभी दौलत की बरसात हुई थी
इन कंगालों के पीछे
शोहरत की कहानियां रहती है
पांव के छालों के पीछे

बेगुनाह ही मारे जाते हैं हर बार
इन बवालों के पीछे
उंगलियां लहूलुहान होती है
उसूल वाले ढालों के पीछे
इमारतें नहीं घोंसले रहने दो
पेड़ों की डालों के पीछे

तुम्हारी नहीं...किसानों की मेहरबानी है
इन निवालों के पीछे
कम से कम रूह तो असली रहने देते
इन नकली खालों के पीछे
~ मोहसिन..✍️


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