Mohammad ata Ashraf   (अता)
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From Chhattisgarh
Joined 19 February 2018


From Chhattisgarh
Joined 19 February 2018
5 NOV 2023 AT 19:50

बारिशों के बाद नए गुंचे आते है
कौन कहता है मरने पे घर के बुजर्ग चले जाते है
वो रहते है, वो रहते हैं घर की तामीर बन के
आज भी घर उनके नाम से जाने जाते है
महकती है खुशबू आज भी इबादत की
उनकी बरकत से अब भी घर में फरिश्ते आते है
है लाख एहसान उनका बच्चो की तरबियातो में
सदके उनकी दुआओं के जाने कितने काम हो जाते है
वो ज़िंदा है आज भी मेरी यादों में
वो अब ख़्वाब में मिलने आते जाते है।

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4 NOV 2023 AT 18:44

एक फकीर है उस टूटी सड़क पे जिस सड़क पे कोई शख्स नही जाता
एक पेड़ है सूखा बगल पे के जहां कोई परिंदा नही जाता
कौन पूछता है वो दरिया जो कोई प्यास नही बुझाता
कौन समझता है मानी शीशा-ए-अक्ल टूटने वाले का
कौन पढ़ता है निसाब वक्त के इशारों का
किसको मिली है मोहलत अधूरे काम कर पाने की
कौन है जो रोक पाया है रवानी इस पानी की
ऊंचे होने की होड़ में न जाने कितने पेड़ कुचले गए
ना जाने कितने दानों ने जमीन में ही दम तोड दिया.
एक कमरे की है बस जिंदगी अब
अधूरा प्यार, पैसा, जिम्मेदारी बस यही है अब
अब तो त्योहारों में भी लड़का घर को नही जाता
जिंदगी के मतलब में अब सुकून नही आता।

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29 SEP 2023 AT 19:00

बालों में तेरे हांथ थे मेरे
मासूम से कुछ ख्वाब थे मेरे
तेरे सपनो से रौशन रास्ते हुए
वोही मंजिल वोही मक़ाम थे मेरे
पूछते है आज भी तेरी खबर वो
बचपन के जो अहबाब थे मेरे
बेदर करते है रात में अक्सर
भूले बिसरे कुछ जस्बात थे मेरे
हर शख्स मायल ए हुस्न है दुनिया में
मेरा खाना ए दिल में कुछ निगहबान थे मेरे
एक तूही था मरकज हर सम्त आने जाने का
तेरी यादों की रेत में भी निशान थे मेरे
कतरा कतरा जोड़े हैं अल्फाज अपने
एक फकीर की कमाई है जैसे आसार मेरे।

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29 JUL 2023 AT 19:41

ढूंढता है अहले ज़माना हुसैन को
खोजा कभी ढोल में कभी तासो में हुसैन को।
निकलती है गर्दिश बाजारों में देखने दिखाने हुसैन को
ना मिला हुसैन ना किसी ने पाया हुसैन को।

हुसैन है,
नमाजो में हुसैन है
नेकियों के सवाबो में हुसैन है।
कटाया सिर जिसके खातिर उस सजदे में
हुसैन है
जो भूल गया इंसा उन सजदा गाहों में हुसैन है।

हुसैन है,
भूको में पैसे में हुसैन है
मजलूम-ओ-बेसहारों में हुसैन है।
अदल के इरादों में हुसैन है
ज़िक्र और अज़कारो में हुसैन है।

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18 APR 2023 AT 19:07

अनदेखी अंजनी चीजों से डराएंगे।
अपनी कामयाबी के सवाल पे वो दूसरो के ऐब गिनाएंगे ।
तुम आसमान पूछोगे वो जमीन दिखाएंगे
अपनी जिम्मेदारी के वक्त वो बहानों की शॉल ओढ़ आएंगे।
है जितनी भी नकामिया उनकी, झूठी तशदीको से छुपाएंगे।
है खून उनका पेशा, नफरत के ढोल वो बजाएंगे
तुम्हारी गुरबत पे वो अपनी कामयाबी की धुन बनाएंगे।
लूटेंगे वोही, वोही तुम्हे बाटेंगे
चोरी कर के भी राजा वोही कहलाएंगे।
अपने मेहलो में रोटी तोड़ कर बेईमानी की वो,
तिल तिल के लिए लाइन में तुम्हे लगाएंगे।
वो जाएंगे लंदन, अमरीका तुम्हारे बच्चो को धूप में जलाएंगे।
जब गूंजने लगेंगे सवालों के नारे, जब जवाब उनकी सोच से बोझल हों जाएंगे।
वो राम राम, अल्लाह चिल्ला कर तुम्हे मज़हब की भांग पिलाएंगे ।
तुम खड़े रह जाओगे मंदिर, मस्जिद के जीनों पे,
वो मौका मिलते ही हवाई जहाज़ में उड़ जाएंगे।

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26 FEB 2023 AT 18:36

इंतज़ार कर रहे है
हम दिल को तैयार कर रहे है,
वक्त की बेचैनी है, यादों का शोर है
एक टूटी कश्ती में दरिया पार कर रहे है
है कास्मकस किस्सा तवील रखे या तमाम कर दे
टूटे मकान में रहने का फिर से इंतजाम कर रहे है।

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17 FEB 2023 AT 18:13

अक्ल बड़ी ज़हीन है मगर दिल होशियार नही
वो बेवफा है ये तस्लीम कर चुका हूं मगर दिल तैयार नहीं।
उस फूल का, उसके शफक का अब कोई और कदरदान होगा
वो महक रहा होगा किसी और बाहों में
अब कोई दूसरा गुलदान होगा।

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15 FEB 2023 AT 11:14

हर दरीचे गिरेंगे, हर जगह गुबार उठेगा,
मुंसिफ कहने वाले उनको, कभी तुम्हारा भी दिया बुझेगा।

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3 FEB 2023 AT 21:43

अर्श से फर्श पर आने में देर नहीं लगती
बदलो को ज़मी पर बरस जाने में देर नहीं लगती।
बड़े बुज़ुर्ग कह गए है पांव ज़मी पे बनाए रखो
पांव के नीचे से ज़मी जाने में देर नहीं लगती।
हो अगर उरूज़ पर तोभी सादा दिल रखिए
शाखो से पत्तो को झड़ जाने में देर नहीं लगती।

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29 DEC 2022 AT 20:38

अपनी नाकामियों को दबा रहे है वो
ज़मी वालो को रोज नया आसमान दिखा रहे है वो।
वो जानते है नही है कुछ जेब में देने को उनके
दूसरो की अमानत से अपना ऐब छिपा रहे है वो।
चलता है कारोबार ही उनका नफरत के तराजू पे
उजाड़ने इस चमन को खार उगा रहे है वो।
है शामिल हर शक्श इस बगिया की बाग-बानी में
तोड़ के तिफ़्लाँ-ए-चमन हक अपना जाता रहे है वो।

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