𝖒𝖎𝖘𝖘. Ãℝ𝓟𝓲t𝐀🖤   (Arpu ki kalam💞)
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Joined 26 June 2019


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वो बला की शोखी देखी है तेरी निगाहों में,
वो हुस्न वो नजाकत वो बेकाबू जुल्फों की घटा;

क्या-क्या बयां करू में तुमसे ऐ मेरी जानेजां;
हर एक बात बेमिसाल है तेरे हुस्न की_।।

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क्या है अब दिल में है हमारे ये ख्याल ना पूछो,
दिल लूटा बैठे है तुमपे कब क्यों कैसे
ये सवाल ना पूछो;

तुम आई और एक खुशनुमा बहार आ गई,
हाय! यार अब हमसे हमारा हाल ना पूछो;

तुम्हें चाह कर भी आगोश में ले नही सकती,
फ़क़त मेरी जां कितना होता हमें मलाल ना पूछो;

झुकी हया से निगाहें और वो तेरे सर पे वो दुपट्टा,
ये तेरी सादगी नीरू हमें लगती कितनी कमाल ना पूछो;

तुमसे पकीजा रिश्ता है मेरा रूह का कुछ ऐसा;
कैसे हुआ तुमसे ये इश्क़ हमें बेमिसाल ना पूछो_।।

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दिल कोडियों में बिक रहा है दोगलों का बाजार तो सजे,
अपनी असमत लिए में होने चली कुर्बान किसी सिद्धक की तलवार तो सजे_!!

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जिस समंदर पे कोई भरोसे की नाव ना टिकी वो साहिल हूँ मैं,
जो समझ ना पाये भोली सूरतों के फरेबों को वो जाहिल हूँ मैं;

जिस अर्पिता ने लोगों के धोखों में तड़पकर तोड़ दिया दम,
हाँ! गौर से देखों मुझे उसी मासूम रूह की क़ातिल हूँ मैं;

ऐ खुदा! ले दी इजाज़त तुझे की कर दे सर कलम मेरा,
ले अपने सर पे सारें गुनाह तेरे पाक दर पे हाजिर हूँ मैं;

जिसने फैला झोली हमेशा की दूसरों के हक में दुआयें नजर,
पर जो फरेबों से तंग आकर खुद का आशियां जला ले वो आतिश हूँ मैं;

गैरों के जहान को जिसने हमेशा मोहब्बत से किया आबाद,
पर जिसने खुद को गमों के सैलाब में डूबों दिया वो बारिश हूँ मैं;

छोटी सी उम्र में जो हुई माँ के पाक आँचल से महरूम,
हाँ! दर-दर भटकती वही बदकिस्मत लावारिस हूँ मैं_।।

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पीठ से निकले खंजरों को जब गिना मैने;
उतने ही निकले जितने अपनों को मैने गले लगाया था_!!

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इश्क यूं ही बदनाम नही है,
हमारे रिश्ते से कोई अनजान नही है;

जो हर इक हुस्न पर मर मिटे,
फ़क़त इतना सस्ता उनका इमान नही है;

चंद अशअरो में जो समा जाए,
अब ऐसा भी उनका किरदार नही है;

मेरी तहज्जुद गुजारी का सिला हो तुम,
तेरे इश्क के सिवा दिल का कोई मुकाम नही है;

कहती है दुनिया दीवानी हमे हमारे यार की;
हाय! इस मस्तानी की ओर कोई पहचान नहीं हैं_!!

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चाँद और चकोर(अनकही दास्तां)

(अनुशीर्षक में पढ़े)..💕

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उठो द्रौपदी अब वस्त्र संभालो,
कलयुग में ना गोविंद लाज
बचाने आयेंगे!!

आर्यों ने तो धारण किया था
उस युग में भी मौन,
वो क्या इस युग तुम्हारा साथ निभायेंगे!!

सौंप तुम्हें दुष्ट दुशासन को;
बस तुम्हारी पवित्रता को ये यूंँ ही
मलिन कर जायेंगे।।

निपट मूर्ख है ये शास्त्र के भूखे;
शास्त्र की आड़ में ये शस्त्रों को
भी जंग लगायेंगे!!

जिनकी नजरों के सामने हुआ
पुरुषार्थ दंडवत;
वो नपुंसक क्या तुम्हारा नारीत्व
बचायेंगे!!

नारी है ब्राह्मण रचियता नारी
से संपूर्ण है सब कुछ;
ये निपट मूर्ख क्या नारी को नारी
का अस्तित्व समझायेंगे।।

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सफर-ए-हयात हसीन चल रहा था,
फिर क्यों मैनें इन धागों को उलझा दिया;

छुपा रखे थे जो बचपन से दिल में जख़्म,
ना जाने फिर उन्हे क्यों अपना समझ बता दिया;

सुकून मिलता था मुझे जिनकी बातों से,
फ़क़त उन्ही के लहजों ने मेरा दिल दुखा दिया;

उन का दिल रखने के चक्कर में अर्पिता;
हाय! तुमने अपना ही स्वाभिमान गँवा दिया_।।

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