जिस समंदर पे कोई भरोसे की नाव ना टिकी वो साहिल हूँ मैं,
जो समझ ना पाये भोली सूरतों के फरेबों को वो जाहिल हूँ मैं;
जिस अर्पिता ने लोगों के धोखों में तड़पकर तोड़ दिया दम,
हाँ! गौर से देखों मुझे उसी मासूम रूह की क़ातिल हूँ मैं;
ऐ खुदा! ले दी इजाज़त तुझे की कर दे सर कलम मेरा,
ले अपने सर पे सारें गुनाह तेरे पाक दर पे हाजिर हूँ मैं;
जिसने फैला झोली हमेशा की दूसरों के हक में दुआयें नजर,
पर जो फरेबों से तंग आकर खुद का आशियां जला ले वो आतिश हूँ मैं;
गैरों के जहान को जिसने हमेशा मोहब्बत से किया आबाद,
पर जिसने खुद को गमों के सैलाब में डूबों दिया वो बारिश हूँ मैं;
छोटी सी उम्र में जो हुई माँ के पाक आँचल से महरूम,
हाँ! दर-दर भटकती वही बदकिस्मत लावारिस हूँ मैं_।।
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