meenu D   (मीनाक्षीD)
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मनमौजी मैं/ लिखूँ पढूँ इच्छा से/ बेफ़िक्री मस्ती
Joined 25 January 2017


मनमौजी मैं/ लिखूँ पढूँ इच्छा से/ बेफ़िक्री मस्ती
Joined 25 January 2017
11 APR AT 11:31

शब्द चुप रह कर भी बोलते हैं
कभी महसूस किया है ?
उनकी आवाज़ कानों को चुभती है
कभी महसूस किया है?
कई बार मुँह चिड़ाते से दिखते हैं
कभी महसूस किया है?
Normal होने की कोशिश करो तो शब्द होने नहीं देते
उनसे आती negative vibes
दिल को बेचैन कर जाती हैं
सिर्फ ख्याल नहीं, यकीन होने लगता है
शब्दों की body language भी पढ़ी जा सकती है
कभी महसूस किया है?
नहीं किया तो महसूस करके देखो

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30 MAR AT 13:50

संवेदनशीलता
विकास के हर पल में प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा
उसके गर्भ में विषैला शिशु-मानव हर पल है पनप रहा
नसों में दूषित रक्त दौड़ रहा रोम-रोम पीड़ा से तड़प रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा कैसे पा जाए यही बस सोच रहा
आशा है मानवता की आँखों में
इस आस में मानव है जी रहा !

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28 MAR AT 9:11

बिन बुलाए मेहमान सी
गर्म हवा ने आकर पांव पसारे
अपना प्रभुत्व जमा कर
चुपके चुपके धूल महीन जो आई
उसने भी रौब जमाया
सारे घर में छाकर
अपने होने का
एहसास खूब जताया
मुस्काई घर के हर
कोने-कोने जाकर
तेज रेतीली हवाएं
छेड़ाखानी करती
दरवाजा खटका कर धीमे से
आती नींद की रानी
छुप जाती घबराकर
पांव पटकती गर्मी
ठंडक पा जाती
मुझको बेचैनी में पाकर

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25 MAR AT 18:21

काश कि ऐसा हो
दुनिया की हर पिस्तौल
पिचकारी बन जाए
टैंक भर दिए जाएं
प्रेम के सतरंगी पानी से
बारूद की जगह फैल जाए
रंग बिरंगे फूलों की महक
और फिर खेलें हम सब
होली का प्यारा पर्व

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16 MAR AT 22:19

तारों से चमकती मांग निशा की
चंदा संग में लाया
तपती धरती को अपनी
शीतलता से सहलाया
रात की रानी ने धरती का
तन महकाया
अंगड़ाई लेकर हरसिंगार का
आंचल ढलकाया
मनमोहिनी माया का मनमोहक रूप
जो मैंने देखा
मदमस्त पवन सी संग मैं खेलूं
मन मेरा ललचाया

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16 MAR AT 22:07

माथे पर सूरज का टीका सजा कर
रेगिस्तानी आंचल से मुंह को छिपा कर
मुस्काई सब दिशाओं को गरमा कर
अपनी ओर झुके आकाश को भरमा कर
तपते रेतीले टीलों के उभार को छिपा कर
तपती धरती बेचैन हुई सोई न अकुला कर

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7 MAR AT 10:24

बदहवास हुआ जाता है
ख़ुद से ख़ुद की पहचान नहीं
एक अनजानी अनचाही दौड़ में
भागता चला जाता है
सब्र नहीं, सुकून नहीं फिर भी
ना जाने किसकी तलाश में
भटकता फिरता है

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27 FEB AT 15:05

मैंने देखा है इंसानों के इस जंगल में
शिकार करें सब दिन के सूरज में
मैंने देखा इंसानों के भूखे चेहरों को
ख़ून के प्यासे रूखे सूखे अधरों को
मैंने देखा लोगों के वहशीपन को
पलभर में वे भूलें, अपनेपन को
मैंने देखा होते अपना सबको पल में
समझ ना आए फिर
घृणा क्यों फैले सबमें
मैंने देखा अन्दर कुछ है, बाहर कुछ
समदर्शी नहीं , इसका दुख है !

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25 FEB AT 22:55

ख़ाली प्याले सा
मेरा दिन बीता
सुरमई शाम हुई
रात के होठों पर
छाई लाली
धीरे धीरे नीली
सांझ का चेहरा
डूबा ओस की बूंदों में
चंदा की आब को पाकर
मदिरा से छलका
रात का प्याला

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26 JAN AT 10:07

जिस माटी में जन्मे हम
उस धरती को नमन हज़ार
वसुधैव कुटुंबकम् को माने हम
प्रेम शांति सद्भाव में रहना जाने हम

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