एक अलसाया सा जाड़े का इतवार
मंद आँच में ठिठुरा सा सूरज
धूप का इंतज़ार करती बालकनी
और मेरे हाथ में चाय का गिलास
चाय से उठता धुँआ
धुँए संग उड़ते से विचार
कौन सा पकड़ूँ कौन सा छोड़ूँ
किसे कराऊँ थोड़ा और इंतज़ार
या जाने दूँ सब को और अजनबी हो जाऊँ
अपने आज से निकल
कई साल पीछे छूटे बचपन में खो जाऊँ
उन जाड़ों के सुकून में उतरूँ
जेबों में गर्माहट भर लाऊँ
न कोई चिंता, न फिक्र, न बे सुकूनी
हाथों में एक पेंटिंग ब्रश
आँखों में ढेर से सपने
पूरा जीवन एक खाली कैनवस
जो चाहे रंग लो, जैसा चाहे रंग लो
काश बचपन का वही पेंटिंग ब्रश
उठा कर यहाँ साथ ले आऊँ
फिर से रंग दूँ सपने, उड़ते आज़ाद परिंदे
कुछ तिकोने से पहाड़,
कुछ झोंपड़ीनुमा खुशहाल घर
घरों के बाहर पेड़, पेड़ पर रस्सी का एक झूला
उस पर झूलते खिलखिलाते सपने,
आसमान छूती हिम्मत की पींगें
और एक पुरजोश इतवार!
मीनाक्षी #wingsofpoetry
-