Meenakshi Sapre   (Meenakshi Sapre)
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I love to describe my feeling in word..
अजीब सी प्यास है, अब बस खुद की तलाश है............
Joined 6 April 2021


I love to describe my feeling in word..
अजीब सी प्यास है, अब बस खुद की तलाश है............
Joined 6 April 2021
8 APR AT 10:24

खुद जैसे हैं ,खुद सा.. वैसे कितनो को तोलोगे,
सबकी अपनी अलग दुनिया है...
अफवाहें वैसे भी फैली है, और.. कितनो के राज खोलोगे,
दूसरो को क्या देखना, खुद भी वैसे हैं...
दूसरो से बोलने वाले, खुद से... कब तक झूठ बोलोगे...,

–Meenakshi Sapre

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27 MAR AT 10:00

यूं बेतुकी बातों को.. जहन में रखना अच्छा नहीं,
लफ्ज़ बहुत कहे सुने जाते...
जरा संभाल कर सुने लफ्ज़,दिल को चुभे ना कही,
जहन में रखना अच्छा नहीं..

जो जहन में बैठ जाए.. उसे न सुनना ही हैं सही,
कतरा कतरा चुभती रहती हो..
उन लफ्जों को जहां सुना, बस भूल जाए वहीं, 
 जहन में रखना अच्छा नहीं...

अब बातों में भी.. पहले जैसी बातें भी नही,
कहना कुछ, सुनना कुछ, समझना कुछ.. 
समझते तो बहुत हैं पर, हर वक्त समझना अच्छा नहीं,
  क्योंकि जहन में रखना अच्छा नहीं...,


–Meenakshi Sapre
 

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6 MAR AT 12:05

ख्वाहिशें कब तेरा जुनून बन जाए,
भड़कने दो आग को जहन में...
ताकि आग तेरे जुनून को सामने लाए,

कोई चट्टान तेरा कुछ कर न पाए,
बस पहाड़ सा तू टिका हुआ...
गिरे चट्टान भी तो तू न हिल पाए,

खुद से कर ले वादा कि, कामयाब खुद को बनाए,
जागने दे उस लक्ष्य को खुद में...
कि कामयाबी तेरा रास्ता देख कर आए|

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26 FEB AT 11:22

2
"एक इंसान"

वो कितने ख़्वाब आंखो में सजाए.. 
मुस्कुराहट को होठों पर लाकर,
एक इंसान सारे ख्वाबों को खुद हकीकत बनाए...

निस्वार्थ वो इंसान एक इंसान को आगे बढ़ाए...
महफिल में बैठे वाह-वाही का हकदार,
खुद के हुनर को किसी और में जगाए..., 
 To be continued.........
-Meenakshi Sapre

'मीनाक्षी' यूं ही लिख रही.. एक इंसान की कई भावनाओं को...
क्या किसी ने खुद को इन पंक्ति में पाया?

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21 FEB AT 11:15


1
"एक इंसान"

किसी ने खुद को अनजान बनाया..
लाखों की भीड़ में छिप कर,
कितने ख़्वाबो को अपने मन में सजाया..

पहरे ना जाने कितने थे,
सबकी नज़रों से बचकर खुद को सबसे बचाया..
एक इंसान ने खुद को अनजान बनाया..,
To be continued...............
–Meenakshi Sapre

'मीनाक्षी' यूं ही लिख रही.. एक इंसान की कई भावनाओं को...
क्या किसी ने खुद को इन पंक्ति में पाया?

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1 JAN AT 0:10

उस साल मे कुछ यूं बात थी, कि वक्त निकला बबाल में..
तब वक्त निकलता नहीं था, और अब वक्त लाया इस साल में..

बहुत कुछ मिला है मुझे, न खोया मैंने किसी हाल में..
चाहत ऐसी है अब उससे, ना खोया ना खोएगे इस साल में..

हां माना अच्छा बुरा दोनो ही, लिखे वक्त की चाल में..
ए-बीते साल..भर ली यादों में, तेरी दी हुई सारी खुशियां...
अब चहरे मे मुस्कान भर कर, प्रवेश किया इस नए साल में ....

–Meenakshi Sapre

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30 DEC 2023 AT 10:00

#6 "जिन्दगी"

सुलझी बातों को उलझा कर चले जाते,
पुरानी यादों से भी सुलझाने नहीं आते,

वजह चाहें हो अलग, शब्दों की तोड़ मोड़ हैं जिन्दगी... 
तेरी अलग जिन्दगी, मेरी अलग है जिन्दगी...

थोड़ा उसको समझा.. थोड़ा खुद को, 
मेरा ये एहसास बताता हैं, मेरी हद को..

ना समझ पाने की हद है जिंदगी... 
तेरी अलग जिन्दगी, मेरी अलग है जिन्दगी...
To be continued.....................

–Meenakshi Sapre

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30 DEC 2023 AT 9:52

सुनने वाला कोई नहीं, जहां ख़ामोश सी दीवार,
खोलते ही दरवाजा.. जहां न दिखे कोई हर बार,

खुद को उलझा कर मन हो रहा बेचैन,
किस्से सुनाने को बहुत हैं पर, ये मन करे इन्कार..

चारों तरफ देख कर भी, जब कोई न दिखे...
तब इन बेचैन हुई सांसों को करती हूं किनार,

जानती हूं बहलाने से ये मानेगी नही..
तब दिल कहता, करना हैं अभी थोड़ा इंतजार...

मन सहम जाता हैं कभी-कभी...
जब सुनने वाला कोई नहीं, जहां सिर्फ ख़ामोश सी दीवार........

–Meenakshi Sapre

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23 NOV 2023 AT 8:35

क्यों मंजिल दूर नज़र आ रही?
क्यों वक्त हाथ थाम नही रहा?
क्यों बड़ रही इतनी उलझन?

शाम होते-होते यूं मानों कुछ हाथ से छूट रहा हो,
क्यों खफा हो रहा मन?

ख़्वाब सारे इम्तिहान ले रहे,
ना जाने किस चीज की नाराज़गी है,
वक्त को न जाने कैसी है जलन...

ना जाने क्यों अपने खफा हो रहे?
यूं मानों पिछला मंजर ही सही था,
क्योंकि तब ख़्वाब और सारी उलझनों से परे था बचपन.....,

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26 APR 2023 AT 22:01

हाॅं वो कुछ उलझने छोड़ कर चले गए..
सुलझे उसूलों को नए पैमाने दे गए,

बिन स्वार्थ वाला प्यार छोड़ कर चले गए..
कई खुशियों के ताले की चाबी दे गए,

कई रिश्तों के धागों में गांठ लगाई थीं....
हाॅं उन धागों में मोती पिरो कर चले गए,

हर पल यादों का सिलसिला चलता रहेगा ...
हाॅं "आजोबा" मीठी यादों को जहन में बसा कर चले गए...,

– Meenakshi Sapre

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