Manju Mittal   (M@njuMitt@l✍️💕)
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Joined 14 May 2021


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26 APR AT 16:11

हिसाब ज़िंदगी का

तन्हाइयों से रहगुज़र होते होते एक दिन__
____भूले बिसरे हमने यूँ ही ज़िंदगी से
___खुशियोॅ का हिसाब क्या माँग लिया,
खुद ही वो तो अपने पुराने हिसाब पर अड़ गयी!
हमने कहा कभी तो इस पौध को भी होने दो हरा
हम पर बिगड़ी और सूखे शजर की तरह अकड़ गई!
बोली मत लड़ तक़दीर से इसमें कम तेरा हिस्सा है
खुशियों के बही खाते में सबका अपना अपना किस्सा है!
अरे!अब क्या हम उम्र भर ज़िंदगी तेरे कर्जदार रहेगें
चल जा अब हम अपने हिस्से की लकीरों को बदलेंगे!
ऐ!ज़िंदगी माना तेरी रहमतों की गुलाम रहेगी 'मंजुल' ताउम्र
खुदा जाने वो किस बात पर नाराज हो फिर हमसे बिगड़ गई!!

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25 APR AT 20:18

स्मृतियों के कैदी पड़े होगे कहीं,मेरी पुरानी कविता के भाव,
पृष्ठों पर उकेर न सकी उन्हें,अलंकृत शब्दों का रहा अभाव,,

फँसी पड़ी होगी फव्वाडे बीच,तोड़ रही होगी कहीं वो पत्थर,
पसीने में तरबतर कई दफा मिलना चाहा उसने मुझसे अक्सर,,

बेजान पड़ी होगी किसी नीम तले, कड़ी धूप से बचती होगी,
कीट,कंक्रीट जो चुभें पैरों में,कहीं कोमलता से सहलाती होगी

भोर का दीप प्रज्वलित कर,गोधूलि में गुम जाती थीं कविता,,
अर्थ,व्यर्थ के भँवर बीच उलझी,लगे अधूरे प्रेम सी मेरी कविता,

होतींआजाद वो स्मृतियों के पिंजर से तो,नेह दे उन्हें मैं सहलाती,
स्वतंत्र विचरती वो नील गगन में,मनोभावों की लिखती मैं पाती,,

ऑंचल की ओट सहेजे रखा मुझे,न्योछावर रही माँ के प्रेम सी,
नादाँ,अनपढ़ ही रही 'मंजुल'कविता,परिपक्व न हुई सयानो जैसी,,

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25 APR AT 0:30

घर अकेला रह गया,उसका अब कोई नहीं हैं रखवारा।
कौन दिया जलाएगा वहाँ,अब कौन करेगा उजियारा।।

चले गए सब शहर की ओर,वीराना कर दिया घर सारा।
सूने पड़े घर-आँगन में, बेघर पक्षियों ने अब डेरा डारा।।

मिल-जुल रहना खाना,चैपालों के हँसी ठहाके पीछे छूटे।
बूढ़े दरख्त छोड़ गए जमीं,लो उजड गया बागवान सारा।।

चौखाटे अब लगी तिडकनें,झर-झर झर रही दरों-दीवार।
ऑंहे भर तन्हा सिसकता,करता क्या घर अकेला बेचारा।।

नेह के बंधन छूट रहे सारे,स्मृतियाँ धूमिल होती जा रही।
पीड़ा घर की समुझे ना कोई,छत से टपके अश्रु धारा।।

बोएगा अब कौन हरियाली,ब्यार उड़ा ले जाएगी पात पीले।
लोटों भटके मुसाफ़िरों,'मंजू' हाथ ना लगेगा कुछ दोबारा।।


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23 APR AT 15:28

उदधि से मिलन को व्याकुल उठती तरंगित सरिता का बहाव बताता हैं,
मार्ग को अवरुद्ध करते पाषाणों का कहीं कोई अर्थ नहीं रह जाता हैं,,

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22 APR AT 23:15

अज़िय्यत ब्यां कर रहीं थी उसकी ख़ामोश निगाहें!
राहें-मुसाफ़िर दर्द के काफ़िले से होकर गुज़रा था!!

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22 APR AT 21:12

कोरे पन्नों की सुध लेती,क़लम हैं जब कोई कविता कहती!
उड़ेल देती अंतर्मन के भाव, समेट लेती सारे दुःखों के रिसाव!!

पतझड़ बन अश्रु जब बहते, हृदय की सारी व्यथा हैं कहते!
क़लम भरती मन उपवन में रंग,जीवंत भाव कविता के संग!!

क़लम स्मृतियों की संगिनी,व्यर्थ ही नहीं कोई कविता बनी!
कविता,क़लम एक पथ के साथी,अंधियारी राहों के दीया बाती!!

भटके पथिक की मार्गदर्शिका,क़लम,कविता हौसलों की पत्रिका!
कविता,क़लम का नहीं हैं कोई सांझी,एक नाव के दोनों मांझी!!

आखर-आखर बुन,दिया पन्नों पर उतार,क़लम कविता का श्रृंगार!
'मंजुल' शब्दों को तुम चुनो,उठाओ क़लम नयी कोई कविता बुनो!!

नील स्याह का तन क़लम,पवित्र,पावन कविता उसकी आत्मा!
लेखक की श्वांसों की लय,ज्यों पा लिया हो उसने परमात्मा!!

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17 APR AT 13:43

किया अभिमानी का अंत,दुष्ट भव सागर तर गए सारे।
संत,सनातन,संस्कृति धन्य हो प्रभु तोरे चरण पखारे।।
जन-जन हर्षित हुआ हृदय,चहुँ दिशाएँ गाए मंगलगान।
समाप्त सदियों की प्रतीक्षा श्री राम पधारें अयोध्या धाम।।

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17 APR AT 7:19

कलम पुकारती रहीं लिख डालों
अब तुम ज़ज्बाते-ए-मोहब्बत!
और एक हम थे कि ज़िंदगी की
बिखरी स्याही समेटने में लगे रहे!!

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16 APR AT 18:52

कब तक जकड़े रहोगे जंजीरों में हवाओं का रुख मोड़ों तुम!
तोड़ो ख़ामोशी की दीवारें झांको तो बाहर शोर अभी बाकी हैं!!

पसरी मायूसी के घेरे को तोड़, मौन अधरों को खोलो तुम!
ज़िंदगी के खाली पन्नों पर लिखनी खुशियों की सौगात बाकी हैं!!

हौसलों के धागों से सील डालों तुम उम्मीदों की फटी अचकन!
सफलता की चढ़कर सीढियां तेरा आसमाँ नापना अभी बाकी हैं!!

माना मैदाने-ए-जंग में लोगों का इल्ज़ाम लगाना लाजमी होगा!
खुदा की अदालत में तेरी खुद की गवाही होनी अभी बाकी है!!

धुंधले आईने पर से डर की जमी तुम धूल तो हटाकर देखो जरा!
खुद से ही खुद की 'मंजुल' होनी तेरी मुलाक़ात अभी बाक़ी हैं!!

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15 APR AT 19:19

***पवित्रा***

बिटिया रानी जरा सुनो तो...
कल हमारे यहाँ कंजका पूजन हैं।
आप सुबह पूजन में आ जाओगी क्या?
हाँ....हाँ आंटी जी मैं आ जाऊँगी।
आंटी जी क्या मैं अपनी दोस्त को भी साथ ले आऊं?
इस बार उसे कोई नहीं बुला रहा....
आपके यहां ले आऊं।
हाँ...हाँ बेटा जी जरूर ले आना....
माँ अन्नपूर्णा की कृपा हम पर बनी रहे।
हमें तो सभी देवियों को मनाना हैं।
वैसे तुम्हारी दोस्त का नाम क्या हैं।

आंटी जी--------"पवित्रा"

(शेष रचना अनुशीर्षक में)

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