ना बँध, समाज के दिखावे में ,
ये है कुछ और, दिखता कुछ और है,
राजनीति में, अधिकतर लोग चोर हैं .
हर इंसान ने चेहरे पर, पहना हुआ है जामा,
दिखता कुछ और है, होता कुछ और है.
खो बैठे, कई डाक्टर भी ईमान अपना,
बड़े हस्पताल में सिर्फ़, पैसों का जोर है .
चपरासी से लेकर, ऊँची पोस्ट वाले भी बिक चुके ,
पोलिस वाले भी कई, देखो रिश्वत खोर है
बिक गई इंसानियत, बाकि कुछ ना बचा ,
इश्क़- मोहब्बत का भी, झूठा शोर है.
मोहब्बत में, पाकवियता ख़त्म हो गई,
तू नहीं और सही, और नहीं और सही ,
बस जिंदगी में, इसी का दौर है .
मंजू कहती है, ख़ुद को बंजारन ,
कभी यहां, कभी वहां ,ना मेरा कोई ठौर है .
बहती नदी तो, समन्दर जा मिलती है ,
पर समंदर का देखो, दिखता कहाँ, कोई छोर है .
सात फेरों का भी बंधन, फीका पड़ता देखा यहाँ ,
मंजू कहती है ,रिश्तों को बांधे, कच्चे सूत की डोर है.
वक़्त के साथ जहां में, सभी रिश्ते, पड़ जाते हैं धूमिल,
-