Manईष Joशी   (कातिब ✍🏻)
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Joined 18 August 2019


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7 JAN AT 14:59

‘‘उम्मीद तो हर कहीं मिल जाती हैं’’
मदद! कहीं-कहीं

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7 JAN AT 14:52

वो क़िस्सा कुछ और हैं जो तुम्हें बताना हैं,
वो हिस्सा कुछ और हैं जो तुम्हें दिखाना हैं।
मैं उहीं नहीं मशग़ूल अपनी धून्न में क़ातिब!
वो कहानी कुछ और हैं जो तुम्हें सुनाना हैं..!!

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28 JAN 2023 AT 14:30

मेरे सब्र का इम्तेहान ना लें..
गर फेल हुआ तो नुकसान तुम्हारा हैं।

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14 JAN 2023 AT 21:25

जो भी थी मुश्किलें असां हो गए
इंसा जो इक दिन शमशां हो गए..
मिट्टी के धूल थे जो मिट्टी में मिले
धुआं बनते ही वो आसमां हो गए..।।

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1 DEC 2022 AT 16:22

मूंफट मैं नहीं, कलम है मेरा..
जुबां जो कह नहीं पाता, कमबख्त ये लिखता वहीं है।

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24 NOV 2022 AT 20:12

वो जो बड़ी देर से रूठते है..
“बड़ी देर रूठते है”

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7 SEP 2022 AT 14:19

काम नहीं
नाम नहीं
थोड़ा भी
आराम नहीं
ज़मीर तेरा
आम नहीं
जमघट में
मक़ाम नहीं
मर्रा सुबह
ठहरा कोई
शाम नहीं।।

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8 APR 2022 AT 1:44

अपने सपनों को सपने में देखना..
जैसे कड़कती धूप में आंखे सेकना।

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4 MAR 2022 AT 10:44

ग़म बांटने के बहाने राज़ जान लेना..
मुनासिब नहीं ऐसे लोगो से ज्ञान लेना।

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26 FEB 2022 AT 1:22

दिन याद नहीं रहते मुझे, अब साल मत पूछना..
उदास दिखूं तो गले से लगा लेना हाल मत पूछना।

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