पतित पावनी मां गंगा जहां कल-कल छल-छल बहती है, है मोक्षदायिनी मां गंगा अविरल बहती रहती है। है नमन है वंदन ऐसी पावन माटी को, मां चंडी, मां मनसा को ऐसी पावन घाटी को।
विपथा, विस्त्रोता, त्रिपथगामिनी भारत का गौरव मां गंगा, करे कष्ट निवारण, मन को निर्मल हरि के हरिद्वार में मां गंगा। जिस धरा पड़े विष्णु के पग करती उसे बारंबार प्रणाम, साधु संतों की दिव्य ये नगरी करूं शीश नवाकर इसे प्रणाम।
रामचरितमानस की तुम, चौपाई सा पावन हो प्रेम सुधा रस की बूंदों से, भीगा-भीगा आंगन हो कुसुम कुमुदिनी से मधुरिम, कोना-कोना महक उठे सौंदर्य निराला मन मंदिर का, तुम वो कुसुम कानन हो
फाल्गुन पूर्णिमा लेकर आई, रंगों की बहार आओ सब मिलकर करें, रंगों की फुहार। मिटाने भेदभाव को, रंगों का आया मेला खुला रंग नभ में बासंती, मौसम हुआ अलबेला। मदमस्त मगन हो, प्रकृति भी खेल रही है होली धरा पर सजी हुई है, रंग-बिरंगे फूलों की रंगोली। आओ खेलें होली रे... आओ खेलें होली रे... (अनुशीर्षक में पढ़ें ✍️👇)
इंतजार में खड़े तुम्हारी, बार-बार मैं राह निहारूं साज श्रृंगार किया जो हमने,बोलो कैसे उसे सवारूं क्या फ़र्क नहीं तुमको पड़ता,बोलो!क्या दूं सजा तुम्हें अब दिल में रची बसी जो मूरत, बोलो! क्या मैं उसे उतारूं
घर की देहरी चौक,डिंड्याली गूंज रही है वही किलकारी न्याय -न्याय की गूंजे ध्वनि,अब कह रही है लाडो प्यारी कैसा यहां कानून है और कैसा दंड का विधान है जो लूट रहे अस्मत नारी की, ऊंची उनकी शान है
बात दोस्ती की हो जबभी,ये कलम तुम्हारा नाम लिखेगी गर, रूठ गए तुम हमसे तो, रोज़ नया पैगाम लिखेगी गंगा सा पावन ये रिश्ता, अक्षर-अक्षर बयां करेगें... मौन अधर जब भी बोलेंगे,ले नाम तुम्हारा गीत पढ़ेंगे