Mahima Bansal (काव्यांजलि)   (Mahima Rakhi)
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Joined 16 April 2019


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Joined 16 April 2019

"खिड़की"

गुज़र ना सके ज़िन्दगी तो तक़दीर तांकते हैं,
आंखों में आशाएं भर क्या तस्वीर झांकते हैं।

लफ्ज़ तो हैं ही नहीं उन दोनों के दरमियां,
ख़ामोश शामों से फिर क्या तदबीर मांगते हैं।

गुज़र ही जाते हैं इंतजार के दिन भी एक दिन,
भला कमरे से चौखट तक क्या ताखी़र नापते हैं।

पल भर यूं आना उसका दिल में घर कर गया,
हर्फ़-ब-हर्फ़ भूलने की क्या तरकीब मांगते हैं।

बंद नज़र आती है अब क़िस्मत की खिड़कियां,
दीवार–ए–दरार से फिर क्या नसीब भांपते हैं।

ग़ुर्बत है दिल की जिन्हें खुदा नसीब ना मिले,
फकत वेबफाई से ‘महि’ क्या रक़ीब जागते हैं।


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@kavymahima

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चाहतों का सिलसिला चला कि कोई चाह ना बची,
ज़िंदगी ने इतना दौड़ाया कि अब कोई राह ना बची।

ठहर जो गया था दिल तेरी ही नज़रों के मयखा़नों में,
तेरी महफ़िल के सिवा दिल की कोई पनाह ना बची।

फ़क़त जज़्बात ही जकड़ते थे रिश्तों की ज़ंजीरों में,
ख़ंजर दिल पर चले कि अब कोई परवाह ना बची।

घिरा था कोना कोना शहर का जहां सबक– आमोजो़ं से,
मुसीबतों का पहाड़ क्या टूटा कि कोई सलाह ना बची।

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महिमा राखी

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Mahima Bansal

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महिमा राखी

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Mahima Rakhi

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Mahima Rakhi

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Mahima Rakhi

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Mahima Rakhi

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