मुझे याद है स्कूल का वो दिन जब
गणित की कक्षा में एक सहपाठी ने कहा था-
सर, सरल सवाल छुड़वा दो और
मुश्किल वाले करवा दो
तब सर ने कहा-
सरल सवालों को सब सरल समझ कर छोड़ देते हैं,
और बाद में उन्हीं सवालों में अटक जाते हैं ।
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आज उस बात को याद करते हुए
प्रेम के बारे में सोचता हूँ तो
लगता है प्रेम शायद इतना सरल था कि उस को
सबने सरल समझ कर छोड़ दिया
और अब वो सबकी समझ से बाहर हो गया है
और उसके परिणामस्वरूप अब
गढ़ी जा रही है
प्रेम की बेतुकी गूढ़ परिभाषाएं ।
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