Madhu Maurya   (Lekhni)
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Joined 30 December 2017


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Joined 30 December 2017
5 DEC 2022 AT 23:33

मुझे हाथों  में ना  हाथ चाहिए
मुझे तो बस तेरा साथ चाहिए,

दूरियों का एहसास ना हो कभी
बस एक ऐसी मुलाकात चाहिए,

जो जीवन भर यूंही बरसती रहे
चाहत की ऐसी बरसात चाहिए,

जिसका कभी सवेरा हो ना सके
ऐसी सुहानी सी एक रात चाहिए,

ना  सोना  चाहूँ मैं, ना हीरा  चाहूँ
वफा की अनमोल सौगात चाहिए,

जिस चाहत का कोई अंत ना हो
मुझे  एक  ऐसी शुरुआत  चाहिए ।

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4 FEB 2022 AT 1:42

यह ज़िन्दगी और क्या है
सुख व दुःख का सोता है,
कर्मों का लेखा- जोखा है
कोई पाता, कोई खोता है...

क्यों चाहत मोती पिरोता है
हर कदम यहाँ समझौता है,
सब होकर कुछ ना होता है
इक छलावा- इक धोखा है...।
— % &

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4 FEB 2022 AT 1:09

ये रात उदासी में लिपटी है
चाँदनी अंबर में सिमटी है,
हवाओं में घुली सिसकी है
फिर याद आई उसकी है...।— % &

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4 FEB 2022 AT 0:42

लेखन एक चित्र की तरह है...जिसे लेखक अपने शब्दों के द्वारा.....अपने विचारों को एक आकार देता है और फिर उसे अपनी भावनाओं के रंगों से सजाता है।— % &

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17 AUG 2020 AT 21:53

माना कि अब मुझको, उसका इंतज़ार नहीं
मगर ये सच नहीं, कि मुझे उससे प्यार नहीं,

माना कि अब हम तो हैं, उससे बेज़ार सहीं
मगर ये सच नहीं, कि है उसकी दरकार नहीं,

माना कि अब उस बिन जीना है दुश्वार नहीं
मगर ये सच नहीं, कि उसपर अधिकार नहीं।

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14 AUG 2020 AT 9:00

तुम्हारा साया बनके तुम्हारे साथ चलना है
लड़खड़ा कर, तुम्हारी बाहों में संभलना है,

तेरा होके हमको, तेरी आगोश में खोना है
तुम्हें देख के सोना, तुम्हें देख के जगना है,

तू दिया -मैं बाती, मुझे तुझमें ही जलना है
तेरे प्यार की आंच से, हर पल पिघलना है,

अपने यह लब हमें, तेरे लबों से सिलना है
तुझमें सिमटके मुझे, तुझमें ही खिलना है,

मिटाके खुद को मुझे, तुझमें ही मिलना है
तू है गगन तो चांद बन तुझमें ही ढलना है।

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14 AUG 2020 AT 8:09

साहिल पर खड़े होकर हमने ये जाना है
हर इक मौज़ का बस एक ही फसाना है
लहराती हुई सी वह आती है किनारे पर
पर किस्मत में साहिल का न हो पाना है,

साहिल पर खड़े होकर हमने ये माना है
मिलना और बिछड़ना तो बस बहाना है
जीवन दरिया में डूबकर या फिर तैरकर
जैसे भी हो, सुख का मोती ढूंढ लाना है,

साहिल पर खड़े होकर हमने ये ठाना है
हर हाल में है चलना, नहीं रुक जाना है
सफ़र में आने वाले तूफानों से लड़ कर
हमें अपनी कश्ती को, पार पहुंचाना है।

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13 AUG 2020 AT 6:26

अपनी तलाश में हमने सब कुछ गवाया
जोगी बन भटका और किया वक्त ज़ाया,

जब अपनों के नेत्रों में दिखा अपना साया
तब जाना ईश्वर का दिया है, यह सरमाया,

(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)

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11 AUG 2020 AT 23:32

लिखते रहेंगे

लिखते रहेंगे हम तो सदा, एहसासों की स्याही से
ढूंढ लाएंगे शब्दों के मोती, विचारों की गहराई से,

मैं दर्द भरी बरखा लाती हूँ, उदासी एवं तन्हाई से
मन की बात लिखा करती हूँ, रूह की गवाही से,

कल्पना संग रहके ना भागूं, जीवन की सच्चाई से
मुझे भला क्या लेना -देना, लोगों की वाहवाही से।

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13 AUG 2020 AT 0:13

माना वक्त के हाथों में बड़ा ज़ोर है
पर मेरा भी ना हौसला कमज़ोर है,

कुछ ना दिखे अंधियारा चहुंओर है
पर तम के बाद जरूर होती भोर है,

माना जग के आघात होते कठोर हैं
पर विजेता हेतु जयघोष का शोर हैं,

परिश्रमी के हाथ किस्मत की डोर है
लकीर के फकीर मनुष्य नहीं ढोर हैं।

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