तुम ही धूप हो मेरी,तुम ही मेरी छांव हो।
तुम ही मेरी मनपसंद पहाड़ी गांव हो।।
बाग हो तुम ही मेरे विचारों के फूलों की,
पश्चाताप तुम ही हो मेरे गलतियों की भूलों की।
सब ठहर जाता है जब, तब तुम ही मेरी ठांव हो।।
तुम ही धूप......
मेरे रक्त में बहती वायु तुम ही,प्राण तुम,
समय के चाक पर चलती,आयु तुम ही,जान तुम।
आंधी - तूफान - बाढ़ से परे, तुम ही एक नाव हो।।
तुम ही धूप......
सुबह की सतरंगी किरणें तुमसे पाती नवजीवन,
तुम ही जरा,तुम ही बचपन,तुम ही मेरा नवयौवन।
जीवन- समुद्र मंथन से निर्गत,तुम अमृत सी भाव हो।।
तुम ही धूप......
तुम ही धूप हो मेरी,तुम ही मेरी छांव हो।
तुम ही मेरी मनपसंद पहाड़ी गांव हो।।
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