जड़बुद्धि पर सरलमना
हृदय निष्कपट अपना,
प्रेमपाश की चालें
मैंने कभी न जाना,
शब्द-श्लाघा में फंसा
जो सुना वो सच माना।
कपटपूर्ण अमर्यादित
कुत्सित व्यवहार की झलक,
दृश्यमान होकर दग्ध करें
कटुता तिक्तता के अंकुर
कोमल हृदय में फूट पड़े।
आबाद था जो कभी,
बर्बाद हो गया है, मेरा
समय पूंजी समर्पण
सब समाप्त हो गया।
सृष्टि का नियम शाश्वत है,
जैसा बोना है फल वैसा पाना है।
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