परेशान पल, जब थोड़ी दूर तू उस रोज,
मेरी मोहतरमा, समझ नही आता जब दिल किट्टू किट्टू करता, समझ नही आता याद करू तो क्या तेरी उंगलियां जिसपे चलना चाहु या तेरे चंद शब्द जिसपे जीना चाहु, ए मेरी प्रियतमा!
उलझन दिल, जब थोड़ी दूर तू इस पल,
मेरी सुबह, समझ नही आता जब दिल किट्टू किट्टू नाम आते हि जीता, समझ नही आता जियु तो क्या तेरी मूझे लगायी हुए आदते या तेरी लिखी हुई कविताए, ओ मेरी रूहानी!
इंतज़ार दिल, जब थोड़ी दूर तू उस पल,
मेरी नूर, समझ नही आता जब दिल किट्टू किट्टू पे मरता, समझ हि नही आता याद करू तो क्या मेरे आराम कि छाव वो पलके या तेरे सफेद दिल कि पसंदी वाली काली स्याही से उतारू शायरी ये!
ए मेरी मासूमियत वाली रात सारी!
समझ नही आता कि दिल नही परेशान याद मे तेरे पर फ़िक्र बेहिसाब ज़िक्र अनगिनत करू तो करू किसका? मेरी किट्टू का या मेरी धड़कन का? यही है परेशानी, उलझन, इंतज़ार कि इतना प्यार कर तो दू यहाँ पर जगह इतनी नही तो लिखू तो क्या क्या?
फ़िक्र बेहिसाब, प्यार बेशुमार!
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