Lavanya Venugopal   (Numismatics❤🕉🇮🇳)
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Joined 7 April 2020


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25 AUG 2022 AT 19:37

*कलियुग के यशोदा-कान्हा!*

यशोदा मैया जो कहती हो स्वयं को,
यशोदा की पहचान पाना आसान है क्या?
कान्हा-कान्हा बोलती हो उसको,
उसके लीलाओं को समझना संभव है क्या?

कृष्ण तो है देह के कण-कण में,
पर हृदय उस देवकीनंदन को अपना पाएगा क्या?
झलक रही है ममता क्षण-क्षण में,
पर उस ममता से विदा लेना आसान है क्या?

मैया!मक्खन जो बनाया है तुमने आज,
कान्हा के बिना वो मक्खन स्वादिष्ट रहेगा क्या?
मैया, कृष्ण की याद तो आ रही है ना आज?
उससे बिन देख मन शांत रह सकता है क्या?

ओह माँ!जी चुकी हो तुम अनंत काल तक,
पर इन अंतिम पलों में अपने पुत्र की चाहत नहीं होती क्या?

*हे कृष्ण!*

अपना तो लिया है मैया को तुमने,
उन्हीं को सदा छोड़ने में दर्द नहीं होगा क्या?
जिनके स्तन के दूध पिया है तुमने,
उस आँचल को त्याग करने से पीड़ा नहीं होगी क्या?

निकल तो पड़े अपने कर्तव्य के मार्ग पर,
किंतु मैया को भूल जाना संभव है क्या?
डाल जो दिया है पत्थर अपने हृदय पर,
किंतु उन यादों को जलाना आसान है क्या?

जोड़ तो लिया है देवकी माँ के संग वो रिश्ता,
पर यशोदा मैया के दर्शन करें बिना मन शांत रहेगा क्या?

ओह कृष्ण!
"देवकीनंदन" कहकर बुला तो रहे हैं तुम्हें सब,
तो अब "यशोदानंदन" तुम्हारा नाम नहीं रहेगा क्या?

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18 AUG 2022 AT 19:04

*कविता डरती है!*

डरती है कलम लिखने से,
काँपती है कविता अपनी पंक्तियों से,
झूठ के आशियाने में रहती है मेरी लेखनी,
सच को दबाकर मर चुकी है मेरी लेखनी।

बेसब्री से थक चुकी है कविता,
भ्रम को दर्शाते-दर्शाते हार गई है कविता।
टूट गया है हृदय का दर्पण लोकापवाद से,
भस्म हुई है कलम की शक्ति आलोचना के ब्रह्मास्त्र से।

लिखूँ मैं सचाई,
या पहना दूँ उन्हें मुहावरों का आवरण?
उतारूँ हृदय रोग के तूफान को,
या छुपा दूँ उन्हें भय की गुफा में?

उत्तम ना होने से डरती है कविता,
अधूरी मानी जाने से रोती है कविता,
अपने प्रतिबिंब को गंवा बैठने से काँपती है कविता,
त्रुटिपूर्ण के नाम पाने से अशांत होती है कविता।

जितने भी समुद्र पार कर ले,
कविताओं की नगरी में नहीं पहुंच पाएगी "लावण्या",
बन जाए श्रेष्ठ,
या कह जाए उत्कृष्ट,
बिन भय से रह नहीं पाएगी मेरी "कविता"।

©लावण्या

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7 AUG 2022 AT 20:05

*झुमके भी कैसे गिरगिट होते हैं!*

वो झुमका एक बड़ा अपशकुन है,
जब भी उसे देखती हूँ ,
तब मुझे उस थप्पड़ की याद आती है,
बात बस इतनी सी है कि,
उस टूटे हुए झुमके का दर्द गाल के दर्द से अधिक है।

वो झुमका एक बड़ा अभिशाप है,
जब भी उसे छू लेती हूँ,
तब मुझे उस दर्दनाक हादसे की याद आती है।
बात बस इतनी सी है कि,
वो प्यारा सा झुमका दहेज की शोभा बन गया था।

वो झुमका एक बहुत बड़ा खिलौना है,
जब भी उसे देखती हूँ,
तब उन वैश्या बन स्त्रियों की याद आती है।
बात बस इतनी सी है कि,
वो झुमका वासना का श्रृंगार बन गया था।

वो झुमका किसी का अतीत है,
जब भी उसे पहनने जाती हूँ,
तब उस विधवा महिला की याद आती है।
बात बस इतनी सी है कि,
वो पहले जैसे खुल के जी नहीं सकती है।

उस झुमके के पीछे कुछ कहानियां छुपी हैं,
सोचती थी कि आज उसे पहनकर देखूँ,
पर अपनी विरासत की बहुत याद आ गई थी।
बात बस इतनी सी है कि,
उस ख़ास इंसान की कमी उस झुमके में नज़र आई।

*और लोग कहते हैं झुमके की सुंदरता बेमिसाल होता है!*
*झुमके की दुकान होती हैं अनेक,*
*पर एक भी झुमका मेरी नसीब में नहीं है।*

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4 AUG 2022 AT 20:44

*आस*
प्रतिदिन आस जगती है नयनों में,
मिलन की प्यास लगती है हृदय में।

थोड़ा जाग उठो सजन,
आँख उठाकर देखो मेरी ओर।
आस की सिलवटों से बना है ये जीवन,
सो गया है हमारे मिलन का भोर।
कमल पुष्प सा हृदय मेरा,
तड़पता है तेरी प्यास में।
*आस............।*

तेरे नाम की ही कविता,
लिखती हूँ हर पन्ने पर।
भाव देना मुझे प्रियतम अब,
चलते हैं इस नए मार्ग पर।
हमारे प्रेम की सुगंध की,
इच्छा है हर श्वास में।
*आस...........।*

अतीत के काँटे चुभते हैं,
मुझे हर पहर में।
नींद उड़ जाती है इस,
विरह की हर लहर में।
संयोग का हर अक्षर,
बदल रहा है एक अध्यास में।
*आस.............।*

रास्ता देखते आयु बीत रही है,
शीघ्र ही अपने में समा लो मुझे तुम।
मिलती हूँ तुमसे अपनी ही अरदास में,
ओझल होकर भी पास में रहना तुम।
आई है मेरी विदा की घड़ी अब,
ढूंढो लो स्वयं को मेरे उपन्यास में।
*आस..........।*

©लावण्या

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26 MAY 2022 AT 20:33

एक अंधे मोड़ से गुज़र रही हूँ,
अनिश्चितता की ओर आगे बढ़ रही हूँ।
अरमानों की डोली एकदम स्थिर रहती है,
पर हृदय की पीड़ा बड़ी अस्थिर बन रही है।
कल की खुशियाँ अब दोबारा मिल नहीं रही है,
कल की छवि बड़ी मायूस सी लगती है।

लोग तो कहते हैं कि "ये भी बीत जाएगा",
पर बीतने की घड़ी कहीं दिख नहीं रही है।
काश! मिले मुझे कोई कोरा काग़ज़,
जिस पर लिख सकूँ मैं ज़िंदगी का एक नया अंदाज़।
काश! मिले मुझे कोई नए किताब,
जिस पर हो हृदय के रंग-बिरंगे ख़्वाब।

*एक अंधे मोड़ पर अकेली खड़ी हूँ*
*सकारात्मक परिणाम के पीछे पड़ी हूँ!*

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29 APR 2022 AT 21:04

I WILL COME BACK FOR YOU!

These filtered words might fail to soothe your heart,
Though, I am perpetually numb at this moment,
But remember,
"That I will definitely come back for you".

Lend your ears to my croaky voice,
In a no man's land where echoes hide.
In the tragic symphonies of my incomplete prose,
Hear the Silent narrations of my buried heart.
Honey!There lays an array of forgotten flowers
In that deserted garden.
Hide them inside the favorite pages of my book.

Darling!Is the poisonous henna of separation pining your soul?
Visit the favourite places of mine,
To feel me like before.
I still stay in those dusky mountains,
Bewitching moonlight,
And the elysian walks of twilight.

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12 APR 2022 AT 11:59

आज मुझे अपने हाल पर ही छोड़ दो!

अगर दिमाग की कशमकश बढ़ने लगी,
तो उसे बस बढ़ने दो।
चलते वक्त पैर अगर ठहरने लगे,
तो उन्हें बस ठहरने दो।
अनचाहे प्रेम की कली अगर खिलने लगी,
तो उसे बस खिलने दो।
मैं जैसी हूँ, वैसे ही मुझे रहने दो,
आज मुझे बस अपने हाल पर ही छोड़ दो!

आस के अंतिम दीपक अगर बुझाने लगी,
तो उसे आराम से बुझाने दो।
पछतावे की नदी अगर बहने लगी,
तो उसे अपने आप से बहने दो।
ज़िंदगी अगर निराशाओं के समुद्र में डूबने लगी,
तो उसे विस्तार पूर्वक डूबने दो।
मेरी ज़िंदगी जैसी है, उसे वैसे ही स्थिर रहने दो,
आज मुझे बस अपने हाल पर छोड़ दो!

उलझन का फांसा गर्दन को खींचने लगा,
तो ताबड़तोड़ खींचने दो।
कविता अगर मायूस सी लगने लगी,
तो उसे बेजोड़ मायूस होने दो।
दिल का हर एक कोना अगर वीरान सा नज़र आता है,
तो उसे वीरानी में ही रहने दो।
मैं बेबस सी लगने लगी तो, मुझे बस लगने दो,
कहो मत कुछ भी,
नहीं है ज़रूरत किसी के एहसान की,
बस मुझे अपने हालात के बख्श में रहने दो!

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6 APR 2022 AT 21:49

*क्योंकि शिक्षा प्राप्त करना हमारा भी हक़ है!*
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कहते हैं कि विद्या जीवन में अनिवार्य है,
कहते हैं कि शिक्षा हर इंसान का मौलिक अधिकार है,
तो आज हम भी इसी अधिकार को माँगने आये हैं,
अपनी हक़ के लिए लड़ने वाले हैं।

आप तो कहते हो कि, बचपन हँसी मज़ाक का उम्र है,
फिर आपने हमें मौज मस्ती से अलग क्यों किया?
आपने कहा ना कि,लड़कपन में सपने सुहाने होते हैं,
फिर आपने हमें क्यों आगे पढ़ने नहीं दिया?
एक पड़ा लिखा इंसान समाज के लिए बहुमूल्य है,
तो हमें शादी के रीति रिवाज क्यों सिखाया?
कहा था कि ज्ञान एक इंसान की सबसे बड़ी ताक़त होती है,
तो हमें विवश और आश्रित क्यों बनाया?

जैसे चाहा आपने, हमने वैसा ही किया,
घर-गृहस्थी में अपना पूरा ध्यान दिया।
कभी बच्चों के लिए तो, कभी पति के लिए,
कभी खाना बनाना तो, कभी घर के तौर तरीके।

पर अब अपने लिए कुछ माँगना क्या गलत है?
अपने सपनों के लिए लड़ना गलत है?
मानते हैं कि विद्यालय के मैदानों में खेलता है बचपन,
समझते हैं कि महाविद्यालयों में घूमता है लड़कपन,
पर कौन सी किताब में लिखी है कि शिक्षा उम्र पर निर्भर है?
किस ग्रंथ में कहा कि मध्य आयु का स्थान सिर्फ घर है?

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6 APR 2022 AT 17:44

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात हो गई, पर वो अभी तक आया नहीं,
हक़ीक़त में वो तुमसे बहुत दूर है,
इसलिए सपनों में थोड़ा उससे मिल लिया करो।

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात हो गई है,पर वो सपना अभी तक आया नहीं,
शायद वो सपना भी आज कहीं चला गया है,
इसलिए उसके यादों को कुछ पंक्तियों में कैद कर लिया करो।

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात बहुत हो गई है, पर कोई भी विचार मन में आया नहीं,
शायद कविता भी आज बहुत मायूस है,
इसलिए कुछ अक्षरों को हथेली पर लिख लिया करो।

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात बहुत हो गई है, सुर वही है पर संगीत वो नहीं,
शायद ये खोखलापन कभी मिटने नहीं वाला है,
इसलिए जल्दी किसी किताब में घुस लिया करो।

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात हो गई है, पर किताबों में कोई चमक नहीं,
हताश होकर शायद तू अब अनपढ़ बन गई है,
इसलिए कुछ बातों की गूँज को अपने कानों में बचाकर रखो।

आँखें बंद करो रात बहुत हो गई है,
रात बहुत हो गई है, और उसमें ज़्यादा सब्र नहीं,
शायद भोर की घड़ी अब आ गई है,
इसलिए अपनी कलम को भी थोड़ा विराम दे दिया करो।

आँखें बंद किया करो, रात बहुत हो गई है,
रात बहुत हो गई है, और अब तू भी कहीं गायब हो गई है!

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8 MAR 2022 AT 18:20


Darling!It's the doomsday, how will you have time for me now? With no room for more letters, I pen odes of gratitude for all the bewitching-blue times you gave me.
Anxiety silenced my voice, but couldn't subdue the roar of my pen!
Last wish on doomsday would be to meet you in a parallel universe, with a permanent slumber full of our unions!

//FULL LETTER IN CAPTION//

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