उतारती है ज़िंदगी अपना रंग धीरे धीरे
अंतिम क्षणों में गहरा रंग जो चढ़ना है ...
किधर कोई जाए इस मर्ज़ को लेकर
जीवन की निरंतरता मौत में है, यही बस पढ़ना है...
ये अशर्फियां ये दो क़दम ज़मीन ये भूख
बस दुनिया का रुतबा है, चाहे जो चाहो इसे अपने साथ चिता पर नही चढ़ना है...
तुम जानते तो हो सब मेरे माजी
पर तुम भी क्या करोगे, तुम्हें तो बस झूठ गढ़ना है...
गुज़रे वक्त की बातें गुज़र चुकी हैं
मुस्तकबिल देखो कुछ नया कि तुम्हें कुछ कर गुजरना है...
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