Lakmi   (AKANKSHA GUPTA)
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Joined 23 October 2019


Joined 23 October 2019
21 MAR AT 19:27

ये कविताएँ न होतीं तो क्या होता,
शब्द तो केवल शब्द रह जाते...
शब्दों में जान भरती है ये कविताएँ,
रिश्तों का सम्मान करतीं हैं ये कविताएँ।।
माँ की ममता, पिता की जिम्मेदारी,
अपनों की अहमियत बताती है कविताएँ।।
जो बात कहने में मुश्किल लगे उन्हें
आसान बनातीं हैं कविताएँ,
एक सख़्त दिल इंसान को संवेदनशील
बनाती हैं कविताएँ।।
इन पर हक उनका नहीं जो लिखता है इन्हें,
ये बन जाती हैं उनकी जिनके दिल को छू
जातीं हैं कविताएँ।।

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19 JAN AT 21:16

प्रेम खड़ा था द्वार पर कर्तव्यपालन ठान कर
भ्रातृ संग था जा रहा महलों को त्याग कर ;
शब्दों से वो मौन थी अश्रु नयनों में भरें
निहारती अपने प्रिय को प्रतीक्षा का एक युग धरे ;
जान उसमें थी मगर था प्राण उसका जा चुका
चक्र ऐसा था समय का रोके किसी के जो न रुका ;
आसरा एक दीप था जो जल रहा था अनवरत
जल रहा वो दीप था या जल रही थी उर्मिला ;
हाँ, जल रही थी उर्मिला विरह के ताप में
एक योगिनी थी उर्मिला जीवन जिसका तप रहा ;
पात्र वो ऐसी रही त्याग जिसका कम न था।।

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19 DEC 2023 AT 23:17

*उम्मीद की रोशनी*
रोशनी रास्ता ढूँढ ही लेती है,
बंद दरवाजे के नीचे जो हल्की सी जगह
होती है वहाँ से ; तो कभी खिड़की की काँच
के भीतर से मुड़के आ जाती है,
सूरज की रोशनी समुन्दर की लहरों
पर बेबाक थिरकती है ; तो रातों में
चाँदनी बन कर धरती पर उतरती है,
घने शज़र की शाखों से ज़रा सी गिरती
है ज़मीन पर छनके ; किसी ख़्वाब की
तरह आ जाती है अंदर मन के,
मायूस आँखों से कभी आँसु बन टपकती
है ; कभी हिम्मत बनकर चमकती है,
सवेरे किसी फूल से टकरा खुशबू बन
बिखरती है ; कभी घुल जाती है चिड़ियों
की चहचहाहट में और कानों में खनकती है,
तारों से ज़मीन पर आने में ये सालों साल
लगाती है, गिरते पड़ते यहाँ वहाँ से रोशनी
रास्ता ढूंढ ही लेती है।

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5 DEC 2023 AT 19:34

Adrak wali chai at
frozen winter evening...

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5 DEC 2023 AT 19:21

मृत्यु मातम नहीं मुक्ति है।।

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30 OCT 2023 AT 20:36

मेरी डायरी का एक पन्ना आजकल शोर करता है
फड़फड़ाता है अक्सर चंद लफ़्ज़ों को तरसता है,
उसी डायरी से बाहर की ओर झाँकता है कलम
जिसकी स्याही मानो बस आज़ादी चाहती है....
बिखरना चाहती है...
मगर फिर फँसी रह जाती है अधरों के बीच कहीं,
जज़्बात तो इतने हैं कि बाढ़ आ जाये
पर शब्दों का जैसे अकाल पड़ा हो,
क्योंकि लफ्ज़ केवल पढ़े जाते हैं और जज़्बात
समझने के लिए होते हैं...
और पढ़ने वालों की इस भीड़ में मुश्किल से मिलते
है समझने वाले...
और तब मौन ताकते रहते है कागज़, कलम और
शब्द...

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9 JUN 2023 AT 20:15

When "I" is replaced by "WE"
Illness turns into Wellness.

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3 JUN 2023 AT 23:43

रंग बदलती इस दुनिया में
मुझे मेरा बेरंग होना अच्छा लगा।

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1 JUN 2023 AT 14:36

Embracing your flaws is like
Accepting your existence.

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29 MAY 2023 AT 20:11

इस कुरूक्षेत्र में अर्जुन है सभी,
जरूरत है तो एक कृष्ण की।।

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