अश्व के माफिक ज़माने के साथ दौड़ते दौड़ते खुद को में भूल गया,
हवाऑ को मेहसूस करते करते यूही कहीं हवा बनकर बह गया,
अंबर सा गुमान लेके फिरता था जो आज मिट्टी पर स्थितप्रज्ञ हो गया ,
मे, मे हु , अहम तो आग की लपटो में कहीं जल कर खाक हो गया,
उम्मीदे, नशा, कामयाबी, सब ओस की बूंद बन कर कहीं बिखर सा गया,
क्या था मेरा, क्या है मेरा इस संशय से मुक्त हो गया
काम, क्रोध, राग, द्वेष, माया से परे एक ज्योति से अंधेरे में रास्ता दिख गया
एन सब से घिरा में तो एक आम मनुष्य था, पर है! परम कल्याणी कृष्ण आप से मेरा सम्पूर्ण जीवन ही आम्रफल के भाती मधुर मधुर हो गया
-