नज़र ना लगे कह के काजल लगाया, नज़र जो मिली फिर नज़र वो ना आया, हमने नज़र था खूब दौराया पर सुनी ना आहट, ना पाया वो साया, नज़र को तो भायी अब उसकी नज़र थी नज़र को फिर भला कौन ही सुहाया!
कोई चकाचौंध नहीं शादगी भाती है तेरी ना चाह कर भी बहुत याद आती है तेरी! मेरी इतनी सारी बातों पे तेरा बस एक जवाब आना तुम्हारे शब्द से फिर मेरा मौन हो जाना, उन शब्दों की गहराई मे मेरा डूबना और बस डूबते चले जाना, इन बातों की कसक भी ना होगी तुम्हें तुम्हारे हर एक लफ़्ज़ के कितने मायने है मेरे लिए!