अब तो सब को ज्ञात है अपने–अपने दोहरें चरित्र से निकलती इत्र से ।। ऐसे ही नहीं मंदिरों के बाहिर भीड़ उमड़ती है ।। -
अब तो सब को ज्ञात है अपने–अपने दोहरें चरित्र से निकलती इत्र से ।। ऐसे ही नहीं मंदिरों के बाहिर भीड़ उमड़ती है ।।
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कभी बैचैनी से जूझता था कुछ बातें जानने को ।अब बैचेन न हो जाऊं इस कदर बचाता हु कुछ बातें जानने से ।। -
कभी बैचैनी से जूझता था कुछ बातें जानने को ।अब बैचेन न हो जाऊं इस कदर बचाता हु कुछ बातें जानने से ।।
– की कहते हैं – अक्सर डूबा जाती है वो तख्त पे रखी ज़िम्मेदारियों की बोझ ।। कई डूबने वाले शख्स हमने तैराक भी देखें हैं । -
– की कहते हैं – अक्सर डूबा जाती है वो तख्त पे रखी ज़िम्मेदारियों की बोझ ।। कई डूबने वाले शख्स हमने तैराक भी देखें हैं ।
चेहरे से नहीं नकाबों से सामना हुआ हैं ।। की खुद को सही साबित करने को लोग किस हद तक गिर सकते हैं ।। -
चेहरे से नहीं नकाबों से सामना हुआ हैं ।। की खुद को सही साबित करने को लोग किस हद तक गिर सकते हैं ।।
इतने शिद्दत (shiddat) से लगाव–ऐ–धूर्त होने लगे हैं शख़्स ।। अब हमने भी सवालों का सिलसिला पूछना ख़त्म कर दिया ।। -
इतने शिद्दत (shiddat) से लगाव–ऐ–धूर्त होने लगे हैं शख़्स ।। अब हमने भी सवालों का सिलसिला पूछना ख़त्म कर दिया ।।
आज का भरोसा आने वाले कल का धोका है ।।ये बातें अब अपनी सोच को समझा देना ।। -
आज का भरोसा आने वाले कल का धोका है ।।ये बातें अब अपनी सोच को समझा देना ।।
पहले इंसानों की वार्तालापो से जाने जातें थे चरित्र इंसानों की ।। अब तो बस फोन ही बता पाएंगे उनकी असलियत क्या है ।। -
पहले इंसानों की वार्तालापो से जाने जातें थे चरित्र इंसानों की ।। अब तो बस फोन ही बता पाएंगे उनकी असलियत क्या है ।।
रफ्ता रफ्ता यूं किस्तों में खाती गई – लगातार वो साहब जादी उसे । वो मर्द भी यूं भ्रम में था की लगाव ज्यादा है ।। -
रफ्ता रफ्ता यूं किस्तों में खाती गई – लगातार वो साहब जादी उसे । वो मर्द भी यूं भ्रम में था की लगाव ज्यादा है ।।
हमारी वार्ता पे मत जा वाजिद ।।देख हमारे रक़ीब अभी भी जिंदा हैं ।। -
हमारी वार्ता पे मत जा वाजिद ।।देख हमारे रक़ीब अभी भी जिंदा हैं ।।
बाजारों में जो निकाला तो देखा , बेचने को नकाबें लगातें थे कुछ गैर चेहरे ।। नादान मैं भी पता कहां नकाबे पहने ख़रीद फिरते हैं अपने ।। -
बाजारों में जो निकाला तो देखा , बेचने को नकाबें लगातें थे कुछ गैर चेहरे ।। नादान मैं भी पता कहां नकाबे पहने ख़रीद फिरते हैं अपने ।।