Krima Prajapati   (Krima Prajapati)
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Joined 7 June 2020


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Joined 7 June 2020
9 JAN 2022 AT 22:32

डगमग होती नाव,
इस नाव के आप खिवैया ।
बीच भंवर हो कितना भी मुश्किल,
आप पार लगाते हो ये नैया ।

खुशियों से भरे सारे किनारे ,
जब मैंने साथ आपका पाया हैं ।
बन उम्मीद -आशा की लौ ,
आपने ही तो मार्ग दिखाया हैं ।

एक तिनका मात्र हूँ मैं तो
तिनका तो कही भी उड़ जायेगा ।
पापा! पर जो हाथ आपका का हो सर पर तो ,
तिनका भी तारा बन चमकेगा ।

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8 JAN 2022 AT 0:14

अब तुम्हे अपना सब कुछ बना लिया है,
इन आँखों मे मैंने ख़्वाब सा सजा लिया है!

तुम्हारे नाम से तो सभी बुलाते ही है तुम्हें,
तो मैंने तुम्हें अपनी जान कह के बुला लिया है!

ये आँखें सुकून की तलाश में थक गयीं थी,
इन्हें अब मैंने तुम्हारा ही पता बता दिया है!

खुद का खयाल रखने से भी मुकर रही थी,
अब तुम्हारे हर हुक्म को सर-आंखों पर बिठा लिया है!

मेरी तलाश में कहीं खो ही गइ थी मैं,
लेकिन तुम्हारे अंदर मैंने खुद को ढूंढ लिया है!

यहाँ नज़र उतारने से ज्यादा लगाने वाले हैं,
तो तुम्हे उन सब से दूर मेरे दिल में छुपा लिया है!

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7 JAN 2022 AT 8:20

वैसे तो हम अनपढ़ है इश्क की पाठशाला में,

लेकिन आज जीजू ने
आंखों ही आंखों से कुछ कहा
और दीदी ने दो रोटी ज्यादा खा ली!

शायद यही इश्क़ था!

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8 NOV 2021 AT 12:34

वो मेहनत करना जानते है,
हर मोड़ पर आने वाली
मुश्किलें से लडना जानते हैं,
हाथ में सफलता की रेखा हो या ना हो
कठोर परिश्रम से सफल होना जानते है|

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30 OCT 2021 AT 22:03

वैसे तो हम दोनों कई मील दूर है,
लेकिन इस रिश्ते पर हमें गुरूर है।

दिल से तो वो मेरे सब से करीब है,
बीच की इस दूरी का गम भी ज़रूर है।

उसकी छाया तक नही पड़ सकती है,
जैसे मैं एक थका पंथी और वो पेड़ खजूर है।

लाखों निराशा में भी वो एक आशा की किरण है,
उसकी सूरत में ही इतना नूर है।

खैर ! हाथ थामना तो नसीब में नही है,
लेकिन यादों के सहारे जीना हमें मंजूर है।

वो जब भी मुझे ख्वाबों में मिल जाता है ,
बस समझो मेरा दिल पूरा ही नशे में चूर है।

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29 AUG 2021 AT 21:45

रुकना नहीं अब ,
तू चलता चलाचल।
छोड़ कठनाईयों को ,
तू बढ़ता चलाचल।

दिक्कत हो जितनी
तू डगमगाना नहीं,
इस राह को छोड़
तू वापस जाना नहीं।
मंजिल भी तेरी
अब कुछ ही दूर है,
छोड़ खोखले बहाने
तू कर्म करता चलाचल।

हा, होता है खुदा का खेल और
किस्मत का मेल भी,
लेकिन अपनी मेहनत पे ईमान
कम होने देना नहीं|
संभलना! ये चंचल सा मन
भटकता बहुत है,
तू अपने मार्गदर्शक का हाथ
पकडता चलाचल|

रुकना नहीं अब ,
तू चलता ही चलाचल।
छोड़ कठनाईयों को ,
तू बढ़ता ही चलाचल|

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29 AUG 2021 AT 16:50

अगर कभी वक्त मिले
तो खुद के भी हो जाना,
भरी महफ़िल में अकेला इंसान
वहाँ पर भी रहता है|
उसे भी जरूरत है किसी के साथ की,
कहीं गिर जाए तो किसी के हाथ की,
आंसू को छूपाने किसी के कंधे की,
खुशी के मौके पर खुशियाँ बांटने की
अगर दुनिया से फुर्सत मिले तो,
उसके भी हो जाना|
ये जग से हारा इंसान
वहाँ पर भी रहता है|

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25 AUG 2021 AT 23:46

हर रात कुछ अलफ़ाज़,
होठों पर आकर रूक जाते है,
गहरे विचारों में कभी छूट जाते है तो,
अंधेरे में कही छूप जाते है,
लेकिन अगर ख्वाब में भी तेरा ज़िक्र हो जाए,
तो ये शायरी बनके निकल आते है !

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22 AUG 2021 AT 13:42

राखी तो बस एक प्रथा है,
वरना बहन को रक्षा के लिए
कोई रेशम के धागे को साक्षी बनाना पडे
ये रिश्ता इतना कमजोर तो नहीं है!

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17 AUG 2021 AT 22:31

तुम वाकई ठीक हो
या दोस्ती में दरार आ गयी?
आजकल जब भी हाल पूछती हूँ,
'खैरियत' ही बताते हो!

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