koshiki gaur  
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Joined 30 June 2021


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25 JUL 2022 AT 14:10

मैं लिखना चाहतीं हूं तुम पढ़ो मुझे अगर......
मैं कहना चाहतीं हूं कुछ अनकही बातें
तुम सुनों मुझे अगर......
मैं रूठ जाना चाहतीं हूं लाखों बार
तुम मना लो अगर...........
मैं दूर जाने का भी बहाना करूं
तुम खिंच कर गले लगा लो अगर.......

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6 MAR 2022 AT 14:24

रेत की तरह फिसल रहा है हर पल
डर लग रहा है ना जाने कैसा होगा कल
सुकून दिल का कहीं खो गया है
ख्वाब अब मेरे हकीकत बन जाये
बस मिल जाये अब मुझे मंजिल

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1 MAR 2022 AT 21:23

सुना है वफाएं नहीं मिलती मौहब्बत में
फिर भी लोग इसे करके देखते है
तो चलों हम भी इश्क की गली से गुजर के देखते है..........

सुना है वो आशिक है हमारे
हमें आखें भर के देखते है
तो चलों हम भी उन पे मर के देखते है
इस इश्क की गली से गुजर के देखते है.....................

नजरें कुछ ओर पर जुबां दोस्ती का नाम लेती है
समझते हम भी है
पर चलों जुबां पे यकीं कर के देखते है
इस दोस्ती ए इश्क की गली से गुजर के देखते है

दावे करते है जो रब से हर दुआ में हमें मांगने का
तो चलों उनकी इबादत में कितना है असर देखते है
उनकी इश्क की गली से गुजर के देखते है......................
— % &

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1 MAR 2022 AT 20:48

बरसों बाद देखा जो वजूद मेरा कुछ धुंधला सा मिला है
ना जाने वजह क्या है
नमीं इन आंखों में है या धूमिल ये आईना हो चला है— % &

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22 FEB 2022 AT 21:18

चाह थी कोई टूट के चाहे हमें
इन निगाहों में ये नशा
यूं ही नहीं छिपा रक्खा था
— % &

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15 FEB 2022 AT 22:50

चाह थी कोई टूट के चाहे हमें
इन निगाहों में ये नशा
यूं ही नहीं छिपा रक्खा था
— % &

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15 FEB 2022 AT 22:39

आज कल दिखते नहीं
क्या वो तुम्हे भी साथ ले गया
इक अरसा हो तुम दोनों के देखे बिना
मैं तुझमें उसे ढूंढ लेती हूं
और उसमें तुझे ढूंढ लेती हूं
लौट आ उसे साथ ले कर
बहुत नाराज है जो मुझसे........
— % &

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22 JAN 2022 AT 0:06

नहीं आयीं थी वो उस महफिल में
उस भीड़ में भला मैं अकेला क्या करता
और
प्यास तो उनकी आंखों से बुझती है हमारी
कोई समंदर कोई दरिया भला क्या करता

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27 DEC 2021 AT 12:09

मेरी डायरी से आज ये सवाल निकला
क्या लिखें इन कोरे पन्नों पर पूरा साल निकला
गर लिखूं दिल के राज तो कितने राज से पर्दे उठेंगें
गर लिखूं इश्क की बातें तो बेबात बवाल उठेंगें
गर लिखूं चांद पर रात पर तो कितने एतराज उठेंगें
गर लिखूं धूप पर तो दुखों के कितने साज उठेंगें
गर लिखूं साजिशों पर तो अपनों के बुने हुए जाल उठेंगें
गर लिखूं कामयाबी पर तो नाकामयाबियों के आवाज उठेंगे
गर लिखूं ख्वाहिशों पर तो कितने सोते हुए ख्वाब उठेंगें
गर लिखूं चाहत पर कितनों के जहन में दबे हुए नाम उठेंगें
गर लिखूं मां पर तो भला क्या लिखेंगें
गर लिखूं पिता पर तो क्या पूरी कायनात लिखेंगें
फिर मुस्करा कर हमनें उन कोरे पन्नों से कलम हटा दिया
मेरी डायरी ने भी मेरे हाल -ए-दिल पर मुस्करा दिया

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25 DEC 2021 AT 14:53

चंद लफ्जों से मेरे याद कर रहे है लोग
कह रहे है वो अब सितारा बन गया
मैं सितारा तो उस आसमां का ही था
ना जाने कब जमीं पर आ गिरा

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