वाह रे नौकरी! तु बड़ी बेरहम दिल निकली रे- कहाँ भरेगी अपने कर्मों की सजा! मासूम बच्चो को कितना रूलाती है, छोड़ दिये है सारे सुख चैन हमने फिर भी तु इतना इठलाती है।। वाह रे नौकरी!.... कभी भाई की कलाई सूनी रह जाती है, तो कभी दिवाली के दिये छुड़ा देती है, छीन लिया है तुमने हमसे हमारी खुशियाँ, तु हमें हमारा घर भुला देती है।। वाह रे नौकरी!....