लिख कर तेरे नाम को हर बार चूमती हूं मैं
बयां न कर सकूं हां तुमको इतना चाहती हूं मैं!
पलकों में सजाएं रातों में ख़्वाब तुम्हारे मैंने
तुम सिर्फ़ मेरे हो कह हररोज दुनियां से लड़ती हूं मैं!
हाथों की लकीरों में होता है नाम महबूब का
हर रोज अपनी हथेलियों नाम तेरा ढूढती हूं मैं!
कभी आओ तो करीब मेरे धड़कनें अपनी सुनाएंगे
इतना याद न आया करो खुद से रोज कहती हूं मैं!
बड़ी नादानियां होती है ये मोहब्बत में अक्सर मुझसे
सामने उनके आते ही उनसे ही नज़रे छुपाती हूं मैं!
उफ्फ सुनो मेरी बेचैनी को कब तुम समझ पाओगे
मरने वाले मुझ पे बहुत है, मगर तुम्हारा खुद को बताती हूं मैं!
"इश्क़" को गुरूर अपनी मोहब्बत पर कुछ ऐसा है
भूल सारे जहां को तुझमें अपनी दुनियां बनाती हूं मैं!
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