घर के कोने में बेठे,आज फिर वह ख्वाब दोहराना है,
ख़यालों की कश्ती लिए, फिर किसी और बढ़ जाना है|
मेज़ पर रखी किताबों में, इस आवारगी को बसाना है,
शब्दों के लाठी पकड़े, हर मंज़र पार कर जाना है |
इन पहाड़ों, नदियाँ, समुंदर में कहीं मेरा आशियाना है,
बस कुछ पन्नो की दूरी है, फिर घर पहुंच ही जाना है |
एक बैचेनी है हर लम्हे में, जिसका ना कोइ दवा है ;
क्यों है यह खानाबदोशी, जब कि एक दिन तुझमे ही मिल जाना हैं|
जिंदगी नामक सफरनामा में, मैंने एक सच जाना हैं -
में "तुम" हूँ हर जर्रे में, यह दुनिया मेरा ठिकाना है |
रूठ ना जाना अगर में कल ना मिलूँ, क्यूंकि ए दोस्त -
खानाबदोश हूँ, मुझे अम्बर पर दौड़ लगाना है |
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