मेरी किताब में ही, वो मस्तूर था।
हाथ आया जो ख़त, मैं रंजूर था।
हद बहुत दुर हो गये हैं, हम तुम,
वस्ल में शायद, फासला मंजूर था।
महसूस हैं किया हर पल, ये मैंने,
वो मेरा ही था, जो मुझ से दुर था।
वक्त कहां ठहरता है, किसी के लिए,
मैं नहीं जानता था, वो काफूर था।
लगता है जैसे कोई पुकार रहा हो
हाला ये कहता है, कोई माजूर था।
जो छुट गया हो, उसे भूला दो,
ऐसा भी कभी कहीं, कोई दस्तूर था।
बेवफ़ाई भी हिस्सा था इश्क का
जख्म जिसे समझते रहे नासूर था।
-