ƙɧąŋąცąɖơʂɧ / ख़ानाब़दोश़   (©Ritesh Sharma)
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दुनिया दर्शन- ७ जुलाई,🎂
Joined 13 October 2019


दुनिया दर्शन- ७ जुलाई,🎂
Joined 13 October 2019

क्या बात है कि उसने मिरी तस्वीर नहीं फेंकी;
ज़रुर कोई तो कसक दिल में रहीं होगी।

सारे शहर में बदनाम हुं मैं ख़बर हैं मुझे।
भला ऐसा भी कोई हैं जिसमें बुराई नहीं होगी।

मानूस है मिरे दर्द से वो भी कि दर्द क्या है।
कोई शाम उसके नाम की भी रही हो कहीं बाकी।

एक ही शहर में रहते हैं हम दोनों।
लंबी डगर के बाद उसके घर की हैं गली आती।

कुछ मिस्रे हैं लिखे मैंने जो आधे अधूरे हैं।
कुछ नज़्मे है और कुछ ग़ज़लें भी है पड़ी आधी।

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बे-बस बे-घर बेचारे जाने कहॉं जायेंगे?
आंख से बह निकले आंसू कहॉं जायेंगे?

सांसों की आंच पर तप कर निकलें हैं।
बहा दिए जायेंगे जाना ये जहॉं जायेंगे।

बे-नाम ख़्वाब निकल आए कभी तो;
दिल को तड़पा कर ये बे-जबॉं जायेंगे।

टुटे हुए ख्वाब हैं जिनकी किस्मत में;
तुम ही बता दो वो फिर कहॉं जायेंगे।

बिछड़ गए गर तुम से तो हम मर जाएंगे;
गुंचा-ओ-गुल चमन-जार मुरझा जायेंगे।

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तुम किस हाल से गुजर रहे हो?
क्या हुआ की बात से मुकर रहे हो।

कल तो मुस्कुरा के मिले थे हम से;
फिर आज क्यों चुरा नज़र रहे हो।

दिन बीत रहें तन्हाई और मुफलिसी में,
जाना आप आईना देख कर सॅंवर रहें हो।

अब के मिलो तो फुरसत से मिलना;
युं ना लगे दिल को एहसान उतर रहें हो।

तुम्हें देख कर ही जी भर जाता हैं,
ना दिखों तो मानो ख़्वाब बिखर रहें हो।

वो चूडियां बेचने वाला तेरे दर से जा रहा हैं,
मिरा दिल की मानिंद तूफान गुजर रहें हो।

आंसू हैं के पलकों पर ठहरते नहीं हैं;
आंखों ही से हाल-ए-दिल बयाँ कर रहे हो।
In collaboration with @karan borana
©Ritesh Sharma

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मुझे हौसला देने वाले दो-चार आए।
बाकी सभी बज़्म में तलबगार आए।

चांद को छुने की ख्वाहिश कि थी मैंने
उसके भी बनकर कुछ वफादार आए।

कुछ टुटे हुए ख्वाबों के तरफ़-दार आए।
कुछ मेरे शाद-ए-दिल खरीददार आए।

तमन्ना यही थी गुल मिले गुलजार मिले;
हिस्से मिरे मगर सारे ही ख़ार-ख़ार आए।

हाए उम्मीद लगाए बैठे थे उन से हम भी;
मिरी कब्र प' फिर करने वो दीदार आए।

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नज़र, दिल, धड़कन को तो अदावत न थी।
क्यूं वो समझते हैं कि हमे मोहब्बत न थी।

ना उल्फत हैं ना मुरव्वत किसी के लिए
मुफलिस की ऐसी तो कोई फितरत न थी।

क्यूं रोकते रहे करीब आने से वो खुद को
हमें तो कभी उनसे कोई शिकायत न थी।

यूं ही कोई बढ़कर हमें भी सिने से लगा ले।
या कह दे फिर ये कि हम से चाहत न थी।

जोरों से धड़कता रहा दिल तिरे दिद को।
कहीं ये धड़कनों की दिल से बगावत न थी?

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मेरी किताब में ही, वो मस्तूर था।
हाथ आया जो ख़त, मैं रंजूर था।

हद बहुत दुर हो गये हैं, हम तुम,
वस्ल में शायद, फासला मंजूर था।

महसूस हैं किया हर पल, ये मैंने,
वो मेरा ही था, जो मुझ से दुर था।

वक्त कहां ठहरता है, किसी के लिए,
मैं नहीं जानता था, वो काफूर था।

लगता है जैसे कोई पुकार रहा हो
हाला ये कहता है, कोई माजूर था।

जो छुट गया हो, उसे भूला दो,
ऐसा भी कभी कहीं, कोई दस्तूर था।

बेवफ़ाई भी हिस्सा था इश्क का
जख्म जिसे समझते रहे नासूर था।

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तेरे दर का फ़कीर ही रहूं चाहे मैं शहंशाह हों जाऊं।
जो छु ले मुझ को एक बार तू, मैं दरख़्शॉं हों जाऊं।

इक मांगा हुआं सा चेहरा लेकर आया दर प' तेरे मैं,
जो दिदार तेरा करा दें मुझे तो मैं फ़रोज़ा हो जाऊं।

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‌कुछ इस कदर गिर जाते है अपने ही मेयार से लोग;
कहॉं मिलते हैं अब वो किस्से और किरदार से लोग।

हॉं मालूम है और करीब से देखे हैं रंग बदलते लोग;
लहजा गिराकर पेश आते हैं कैसे सरोकार से लोग।

ना जाने कैसी हवा चली हैं फ़ज़ा भी बदली बदली;
हर तरफ ही देखो तो नज़र आते हैं बे-जार से लोग।

जब दर्द सुनाता हुं मैं उनको क्या दर्द हैं मुझको तो;
बन कर आ जाते हैं ये फिर कोई खरीदार से लोग।

इश्क से कौन बचा है? इश्क तो सब करते हैं फिर;
मुझ को बताते किस्सों में हैं क्यु गुनाहगार से लोग।

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From tomorrow,
It won't be the month june,
It won't be the same season,
It won't be the same sky,
It won't be the same breeze too.

However,
There will be one heart;
Which will always lubdub for you.

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‌कुछ इस कदर गिर जाते है अपने ही मेयार से लोग,
कहॉं मिलते हैं अब वो किस्से और किरदार से लोग।

हॉं मालूम है और करीब से देखे हैं रंग बदलते लोग।
लहजा गिराकर पेश आते हैं कैसे सरोकार से लोग।

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