कुछ ऐसे जज़्बात भी होते हैं, जिन्हें चाहकर भी कलमकार नहीं लिख पाते कविताओं, कहानियों या नज़्मों में ये बनते वो ख़त, जो लिखने के बाद दफ़ना दिये जाते हैं डायरी या किताब के पन्नों के बीच या अलमारी की सबसे ऊपर वाली दराज़ में, अखबार के नीचे पर जलाये नहीं जाते ऐसे खतों को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती।
इंसान ने जरूरतों को जन्म दिया जरूरतें इच्छाओं में बदल गईं और इच्छाएं परिवर्तित हो गईं लालसा में और बिकने लगीं बड़े बड़े बाज़ारों में बाज़ार बड़े होते गए, और उनके साथ बड़ा होता गया अहंकार जितना बड़ा बाज़ार, उतना बड़ा अहंकार देखते ही देखते, पूरी दुनिया बन गई एक बहुत बड़ा बाज़ार और अहंकार बन गया, इंसान से भी बड़ा अब इस बाज़ार में, रोज़ बिकता है इंसान और अब उसे खरीदता है अहंकार!!