खा़लिस  
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Joined 20 January 2018


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25 FEB AT 21:44

Instead of years, I live in kilometers traveled, stories exchanged, and realities challenged.

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25 FEB AT 21:36

छिटक कर गिर पड़ी तकिये के कोने से
जो रात सिरहाने पे रखकर भूल गया था मैं

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28 JAN AT 23:46



"That's the only rule. You can scream or shout, mock or abuse, just can't speak to anyone."

"Okay. Can I atleast listen then?"

"You can try. But amongst the screaming and shouting, the mockery and the abuses, I don't think that's a wise choice."

"How about I don't do anything and just sit like a piece of furniture."

"Sorry, but that's my role as the Parliament Speaker."

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15 JAN AT 0:15

Light awaits darkness
To tell
" Some day 'twas "

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23 FEB 2022 AT 14:06




मजबूरी

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14 OCT 2020 AT 11:22

कुछ ऐसे जज़्बात भी होते हैं,
जिन्हें चाहकर भी कलमकार
नहीं लिख पाते
कविताओं, कहानियों या नज़्मों में
ये बनते वो ख़त, जो लिखने के बाद
दफ़ना दिये जाते हैं
डायरी या किताब के पन्नों के बीच
या
अलमारी की सबसे ऊपर वाली दराज़ में, अखबार के नीचे
पर जलाये नहीं जाते
ऐसे खतों को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती।

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2 OCT 2020 AT 13:41



Zoom का जंगल

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30 SEP 2020 AT 10:25

जिसके झूठे बेर थे खाए
उस शबरी को जलाएँगे

नोच नोच कर, चीड़ फाड़कर
गोश्त उसीका खाएंगे

मारेंगे, घसीटेंगे, अंत तक उसे
मौत को हम तरसायेंगे

राम नहीं, सब रावण होंगे
ऐसा रामराज लाएंगे

फिर रामलला हम आएँगे
और मंदिर वहीं बनायेंगे

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28 SEP 2020 AT 20:26

इंसान ने जरूरतों को जन्म दिया
जरूरतें इच्छाओं में बदल गईं
और इच्छाएं परिवर्तित हो गईं लालसा में
और बिकने लगीं
बड़े बड़े बाज़ारों में
बाज़ार बड़े होते गए, और उनके साथ
बड़ा होता गया अहंकार
जितना बड़ा बाज़ार, उतना बड़ा अहंकार
देखते ही देखते, पूरी दुनिया बन गई
एक बहुत बड़ा बाज़ार
और अहंकार बन गया, इंसान से भी बड़ा
अब इस बाज़ार में, रोज़ बिकता है इंसान
और अब उसे खरीदता है
अहंकार!!

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19 JUL 2020 AT 15:30


सफ़ेद परछाईं

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