Alfazo se tere dar lagta hai... Javaab dene ko dil na kahata hai... Fir se mohabbat mein kho jaunga tere... kuch vakt ke batao mein barbad ho jaunga fir se... Badi mushkil se khud ko phuslaya hai... Tumhari khudgarzi me jazbaato ko jivan de doonga fir se... Tumhari aankhen to band ho jayegi sukun se... Mere to nm ho jayegi fir se... Tum to kese or ke kandhe pe sar rakh ke chale jayogi fir se... Mere ruh to gum ho jayegi tere peche peche...
मोहब्बत करो इनसे बड़ी प्यारी होती है लड़किया... इनके आंखों से काजल को बहने न दो बड़ी प्यारी होती है लड़किया... जिस्म के पर्दो को आँखों से हटाओ उनके दिल से मोहब्बत करना सीखो... नादान सिसु की हत्या करना बंद करो एक औलाद के लिए... सामान की तरह तौला या बेचा न करो इन्हे बाजारों में... इनके मुस्कुराहटों पे जीना सीखो... अब भी वक़्त है खुद को बदलो... जानवर से फिर इंसान की राह पे चलो... ज़मी को सूना न करो...
Jazbaato ko sambhal nahi pata hu... Dill ke batao ko zuba se kah nahi pata hu... Tumhari jarurat hai ye jaan ke bhi... Samajh ke dar se chup ho jata hu...
सवारे के आहोश में जब आँखे खुलती है तो तुम्हारा चहरे नज़र आता है... तुम्हारे चेहरे से मानो दिल को कोई सुकून मिल जाता है... ओस की बूंदे भी जिस्म से लग के तुम्हारी होने का एहसास दिलाती है... तलब तुम्हारे जज़्बातों के गरूर को लंग जाती है... खुली आँखों से जो सपनो के ख्वाब बुने थे... हकीकत में तुम्हारी आँखे तोह किसी और के बहो में खुल जाती है...
देखो खुद को बदल दिया मैंने... तुम्हारी सारी न पसंद बातों को चूम लिए मैंने... अपनी पहचान को दफ़न कर दिया मैंने... ओरो की तेरा खुद को चुन लिया मैंने... किस्मत से अपनी मोहब्बत को बदनाम कर दिया मैंने... देखो न खुद को बदल दिया मैंने...
बीते वक़्त की सुई के साथ कुछ वक़्त निकाल के तुम्हारी तस्वीर को देख लिए करता हु... तुम अभी मेरी ही हो यहाँ केहे के दिल को पुसला लिया करता हु... तुम्हारी नज़रों से नज़रे मिला के सारे गम बयां कर दिया करता हु... क्यों तुम्हारी तस्वीर से घंटो बाते कर लिया करता हू... तुम्हारी कितनी जरुरत है ये बात तस्वीर से भी बया नहीं करता हु... डर लगता है... तस्वीर से भी तुम्हारी जो वफ़ा की उम्मीद नहीं रखता हु...
चलो अब खत्म करते है... लोगो के ज़ुबा से अपने पन्नो को गुम करते है... उनके नज़रों से खुद को दोषी घोषित करते है... अपने लहू को जिस्म से अलग करते है... हाथों से अपने खुद का गला घोट लेते है... इतहास के तरह खुद को दफ़न कर लेते है... चलो अब बहुत हुआ खत्म करते है... अपनी तस्वीर से ही खुद को गुम करते है...
आज रोजना की तरह अपने घर के नुकर पे बैठ के... उस चाय की चुस्की को ले रहा था जो काफी दिनों से पि नहीं थी... अपने ही खयालों में रहे के खुद ही से बाते कर के खुद ही को पागल कहे रहा था... अपनी जेब से तस्वीर निकाल के अपने मोहब्बत को दुबारा ज़िंदा कर रहा था... इसी मदहोशी में अचानक से किसी ने मेरा हाथ थाम लिया... चेहरा मुरा आँखे मिली तो छोटे न हाथ फला लिया... जेबो को खोकला किया बटुऐ में नोट की तलाश की... आसपास में अनजाने को जानने की कोशिश की... किसी और से नोट की उम्मीद की दिल लगी की... निराशी में खाली हाथ लेके पेश की... मेरे पास है ही नहीं कहे के अपने बोझ को बांटने की कोसिश की... छोटे ने नज़रों से नज़रे मिला के थोड़ी देर तक के... मुस्कुरा के मुझसे दूरी बनायी... उसका मुस्कुराना एक सवाल दे गया... क्या वो गरीब था या मुझे गरीबी का एहसास दिला गया...
पास मेरे आओ न... साथ मेरे बैठ के गिले शिकवे मिटाओ न... नज़रों से फिर दिल को सताओ न... दूर क्यों हो... साथ मेरे रहे जाओ न... मोहब्बत की चासनी में... यादों को मत जलाओ न...