नाली में गोता लगाए हुये इंसान नशे में होने के कारण वो ये समझ ही नही पा रहा कि दुर्गंध नाली में है या उससे बाहर ..ठीक उसी प्रकार मन की आँख पे काली पट्टी बंधी हो जिसके, उसके सामने क्या स्वेत रंग, उसे तो सब काला ही दिखना है
ऊपर की दो लाइनों का सिटी स्कैन किया जाए तो हजारों गम, लाखों ख्वाहिशें और बेहिसाब अंत किये गए सपने मिलेंगे, और इन सभी पर "ठीक हूँ की ओढ़ाई गयी चादर मिलेगी..!!
जीवन में क्या ऐसे पडाव आते है जब हर पल ये लगे कि अब आगे क्या करना है ....ऐसा लग रहा मानो जो समय मिला है खुद के बिखरे अस्तित्व को समेटने को वो खुद को बिखरा हुआ देखने मे ही बीता जा रहा है ..क्या करना सही होगा क्या करना गलत जैसे कुछ समझ नही आ रहा....