13 MAY 2017 AT 17:26

वक़्त तो कभी जरूरी था भी नहीं रुके रहने के लिए... नीयत थी ।बस इसी लिए एक सदी पहली वाली सारी चाहनाएँ आज फिर नई हो गई। एक बार फिर मिल जाने का शुक्रिया इश्क़ ।

तुम कह देती हो ... मैं कह नहीं पाता।फिर भी तुम्हारे लिए कोशिश करूंगा। मैं सीख लूंगा।बस रुकी रहो मुझमें।

ज़िन्दगी की चुपके से चैट पढ लो तो रूमानी सा कुछ पढ़ने को मिल ही जाता है।

- कल्पना पांडेय