मैं देर तक आसमानों पे यूं ही लिखती रहती हूं,
अपने बस एक ही ख्वाब को बुनती रहती हूं,
अल्फाजों के समुंदर कम पढ़ने लगते हैं,
जब भी "मैं" खुद को ही ढूंढने लगती हूं,
एक दिन फिर सवेरा होगा बस यही सोचकर,
फिर एक नए सिरे से ढलने लगती हूं,
हां थोड़ा इल्म थक जाती है पर क्या करे,
उठ कर फिर वही जवाब ढूंढने लगती हूं,
मैं देर तक आसमानों पे यूं ही लिखती रहती हूं,
अपने बस एक ही ख्वाब को बुनती रहती हूं,
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