kaashi ek kavi   (Kaashi ek kavi)
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फ़ैली स्याही
कागज कोरा
ज़ख्मी मैं अब थोड़ा-थोड़ा।🖤
Joined 28 August 2019


फ़ैली स्याही
कागज कोरा
ज़ख्मी मैं अब थोड़ा-थोड़ा।🖤
Joined 28 August 2019
28 JAN 2023 AT 21:15

लिखना नहीं छोड़ा मैंने -
बस कुछ वक्त गुमनामी में बिताना चाहता हूँ।
सपने बाद में है पहले ज़िम्मेदारियाँ निभाना चाहता हूँ।
बेनाम सा मैं बदनाम सा फिरता हूँ -
इन नज़रों के नज़रिए अब बदलना चाहता हूँ।
ना-समझ बेटा था -
अब समझदार पिता होना चाहता हूँ।
अब मशहूर होने की तलब नहीं -
बस अब थोड़ा सुकून चाहता हूँ।
लिखना नहीं छोड़ा मैंने -
बस कुछ वक्त गुमनामी में बिताना चाहता हूँ।

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7 NOV 2022 AT 22:48

Akeli raaton ka bss ek thikana tha
Chaand se chand si baatein thi fir rote hue muskarana tha
Khte hai mehfilo m ek shaayar tha jo akelepan kaa diwana tha
Hosh m kuch likhta tha madhoshi m kh jaata tha
Uski saanson ko kalam kagaz aur shbdo ka sahara tha
Sadgii ko chorkr ab dikhawa sbko bhaata tha
Bachpan ka woh raaja betaa ab dushmano m aata tha
Rishte naate duniya daari sbse woh anjaan tha
Apne hi the krte chal bhugtana ab usko anjaam tha
Faisle ab uspr toot pdhe the kuch apno ka bichaya jaal tha
Khoon ke rishte paani the paani bhi woh khaaraa tha
Uske muh pr uske the peeche har ek ne khanjar maara tha
Shbdo m woh pura tha aankhon se adhura tha!!!

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7 NOV 2022 AT 10:34

Mohabbat m ehsaan nhi hota
Kitni thi kisse thi kab thi
Yeh btana aasan nahi hota
Aur maut se pehle bhi rk maut dekhi hai maine
Waise toh inn khayalo ke khayal aana bhi aam nahi hota🖤

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18 APR 2022 AT 11:55

उन लम्हातों की क्या बात थी
अपने तो बहुत थे पर अपनो सी बात नहीं थी
कहना-सुनना बाक़ी था
पर खामोशी से बड़ी कोई बात नहीं थी
और रुक गया था वो वक़्त एक मोड़ पर-
वैसे तो उस मोड़ और मेरी भी कोई बात नहीं थी।

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9 MAR 2022 AT 4:32

मत के विकार में
ज़ख्मों की किताब से
आग थी या ख़ाक थी
स्याही मेरी पाक सी
प्रश्न जिनके हल नहीं
क्या ज़िंदगी श्राप थी ?

वक़्त का वो काँटा था
उम्र के ख़िलाफ़ भी
यूँ तो चलती ज़िंदगी
मृत्यु साथ-साथ थी
दृश्य सब समान से
संरचना भेदभाव की
अभिमान में कपाल भी
सत्य सारे तथ्य थे
कथन मेरे छल नहीं
क्या ज़िंदगी श्राप थी ??

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17 JAN 2022 AT 1:58

ख़ामियाँ तो बहुत है मुझमें -
इन्हें गिनतियो में ना गिना जाए तो कैसा रहेगा?
साज़िशों ने छीन लिया बचपन - अब जवानी से जाकर पूछे कोई??
इस बच्चे को थोड़ा जीने दिया जाए तो कैसा रहेगा?
ओर मुक़दमा फिर लगा है मुझपर मदहोशी का -
ये सारी दलीलें किसी काग़ज़ पर लिखकर फाड़ दी जाए तो कैसा रहेगा?
अदाकारों के किरदार भी हो चुके अब ख़िलाफ़ मेरे -
इन्हें अब कहानी से ही निकाल दिया जाए तो कैसा रहेगा?
शोर बहुत था “मैं तेरा मैं तेरा” -
तू किसका ये सबको बताया जाए तो कैसा रहेगा?
काग़ज़ की नाव सा किरदार बताया मेरा -
अब मुझे गहराइयो में डूबने दिया जाए तो कैसा रहेगा??

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19 NOV 2021 AT 0:14

क़त्ल सरेआम था
दर्द तो महज़ एक अंजाम था
गुफ़्तगू करूँ कलम से - ये मुझे वरदान था
झूठ के इस शहर में - सच बदनाम था
रिश्तों की नुमाइश को - मजबूरी का नाम था
अदालत के मुक़दमे सा - ख़ारिज अथक प्रयास था
अंदर के शोर से - ख़ामोश अब किरदार था
दौर-ए-दर्द बयान तो करते - मगर यहाँ चेहरों में भी लिबास था
कौन अपना - कौन पराया ये तो आज तक सवाल था
मृत्यु को जिया है मैंने- जीवन तो महज़ एक इलज़ाम था
काशी-काशी कहते शायर -
राशिफल से तो मैं आकाश था 🫀

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27 SEP 2021 AT 0:12

लिखने का शौक़ीन था-
अब शौक़ पूरा करते या ज़रूरतें
रिश्ते निभाने का मिज़ाज था-
अब रिश्ते बचाते या आत्म-सम्मान
रक्तचरित्र-बद्ध था-
अब चरित्र दिखाते या अहम
क्रोध मेरा अस्त्र था-
अब अस्त्र उठाते या शास्त्र
लिखारी मैं जाना जाता था-
अब कलम चलाते या ज़ुबान।

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19 AUG 2021 AT 2:44

दर्द ला-इलाज था -
उसका मर्ज़ सिर्फ़ आकाश था
मैंने खुद को कुछ यू किया उसका -
के जिस्म मेरा था ओर रूह पर लिखा उसका नाम था ।

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9 AUG 2021 AT 22:03

जो तुम क़िस्मत में लिखवाकर आए थे वो सब मैंने कमाया है
और वसीयत के काग़ज़ात तुम्हारे ही हिस्से थे -
मेरे हिस्से में तो बस मेरे पापा का नाम आया है।

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