ना जाने क्या हो गया है मुझे,
मन ही मन मुस्कुराती रहती हूं
मंद मंद दिनभर गुनगुनाती रहती हूं।।
ना जाने क्या हो गया है मुझे,
उसकी हर बात को दस वारी पढती रहती हूं
उसकी तस्वीर को बार-बार निहारती रहती हूं ।।
ना जाने क्या हो गया है मुझे,
आज-कल ख्यालों में खोई रहती हूं
कुछ पागल सी हरकतें करती रहती हूं।।
अब ना होता "ज्योति" से और इंतजार,
मिलने के लिए है बहुत बेकरार।
हिस्सा नहीं जिंदगानी बनने की सोचती है,
एक शख्स के दीदार की तलब रखती है।।
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