भीतर तूफ़ाँ था, ऊपर ख़ामोशी वो समझे कुछ नहीं, हमने समझाया भी नहीं। ख़ुदगर्ज़ हैं वो, हम भी क़म नहीं समझाने में अर्सों बीतेंगे, सोचा बंद ज़ुबाँ में हर्ज़ नहीं।
जब वो तुम्हारे साथ प्रेम में होती है, तो अपना नाम तुम्हारे साथ जोड़ लेती है लेकिन जब तुम उसके प्रेम को आहत करते हो, तो नाम में क्या अपनी आत्मा तक तुम्हारा साथ नही चाहती..!
तुमने कभी दबाव नहीं बनाया मुझ पर तुमने कभी कोई रोक नहीं लगायी मेरी किसी इच्छा पर लेकिन कमाल है फिर भी मेरे द्वारा सारे काम दबाव में किए गये फिर भी मेरी सारी इच्छाओं का दमन हुआ... क्या इसके पीछे आपका परिवार था या परिवार की आड़ में तुमने मुझे स्वतंत्र रखा...✍️✍️