सीखा था चलना पकड़ कर लड़ना उसी से रूठना भी सीखा था बचपन था वो मेरा जब चाहे तब थे खुशियाँ😇 थी मिली बेजुबानों🤐 कि तरह डांट उनकी लगता प्यार ❤️ है आज वो नहीं तो लगता बुरा ये संसार है पूछना मुझे उनसे सवाल?? डांट सुननी है उनकी अभी तो मैं छोटी हूँ क्यूं छोड़ गए दुनिया मे मुझे
अल्फाजों के पन्नों में छुपी है दास्तना मेरी खव्बो की दुनिया मे छुपी है आशियाना मेरी खोजती फिरू मैं उसे मिला न कोई पन्ना मुझे न मिला दुनिया मेरा अनजान ही सही पन्ना कहीं हो न जाए गुम कहीं अल्फाजों के पन्नों में छुपी दास्तना मेरी
क्या? राह क्या? पथिक जो इसको जान ले वहीं है सटीक राह मे काटे हो फूल हो चलना ही तो है, हाँ! रास्ते मे बाधा तो आएगी जो इसको मात दे वहीं है पथिक जाने दो इस वर्ष बहुत गम मिला है इसमें नए वर्ष की नव दिन मे हम भी खुशियाँ लाएंगे नव वर्ष मे हम भी बदल जाएँगे। सटीक पथिक बन जो आएँगे।
जाने वो कहाँ है?? जो ह्रदय मे छुपा है ढूंढ रही है ये आँखे नजर ही न पहुंचे वहाँ तक.... वो जहां है मिल जाए अगर वो?? देखती ही रहूँ उसे मैं चाहे वो जहां है खुश ही रहे ये मेरी रब से आरजू है
दोस्ती तो की थी हमने किसी से पर हमें क्या पता था छोड़ जाएगा हमें मैं तो जी रही थी इस ख्वाब में कि मिल गया हमें हमारा खोया दोस्त जो हमनें खो दिए थे नादानी में अफ़सोस!! उसने भी हमें छोड़ गया जिसे हमने अच्छा दोस्त समझा शिरीष के फूल की तरह कोमल समझा था परन्तु नीम की तरह कड़वी निकली