मानव विकास की प्रकिया में
स्त्री पशुत्व को त्याग कर
कई प्रकाश वर्ष आगे चल रही हैं।
लेकिन
पुरुष और पशुत्व अभी भी एक दूसरे के पर्याय बने हुए हैं।
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जिज्ञासु(विष्णु)
(©जिज्ञासु “vishnu”)
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Joined 12 January 2019
11 JUL AT 22:21
5 JUL AT 11:44
होता हैं दिल भी बैंगनी, इश्क की आग मे झुलस कर।
फूंक-फूंक कर सिगरेट, उसने होंठों का रंग बदला हैं ।।
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2 JUL AT 23:52
जिसको को लोग मानते हैं,उसी को लोग मानते।
आपके पास दो लोग है ,उसी से चार लोग आते हैं।
क्या आप यह जानते हैं!
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23 JUN AT 0:13
मिट्टी से बना आदमी एक दिन मिट्टी हो जाता हैं।
फिर जंगलों से बने शहर एक दिन वापस जंगल होंगे?-
20 JUN AT 23:15
जब बेटियां घर से विदा होती हैं
तो पिताओं का चेहरा ठंडा ,सफेद और उदास
पड़ जाता हैं।
देखो!जैसे हिमगिरि के उत्तंग शिखरों को।
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17 JUN AT 0:40
जो किताब महकती हैं
जरूरी नहीं वो सुखों से भरी हो।
फूलों को तोड़कर, उबालकर इत्र बनता है,
सुख कुछ नहीं दुखों की परतों में धंसा हुआ प्रेम हैं।
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