जान की भीख मांगती वो जीवन दायनी थी गम सहती रहीं वो मरहम हर गम के बनने वालीं थी गंगा सी पवित्र आज अशुद्ध होतीं रहीं दुष्टों के हाथ मरती रहीं वो विनाश...काली थी... मुस्कुराती वो भी किसी की बेटी थी मुस्कुराती वो भी किसी की बेटी थी..
आसमानों में पली वो चंचल सी कली थी लहराती..क्या वो किसी की खेती थी..? काट दिया जिसको दरिंदों ने मुस्कुराती वो किसी की बेटी थी मुस्कुराती वो किसी की बेटी थी