तेरी शिरत साफ शीशे की तरह मेरे दामन में दाग हजारों है तू नायाब किसी पत्थर की तरह मेरा उठना बैठना बाजारों में है तेरी मौजूदगी का एहतराम कर भी लू जब तू होगी रूबरू मैं ए जज़्बात कहा छुपाऊंगा एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा
तू दूर रह के दूर थी पास रह कर भी दूर है तुझे प्यार ना करना चाहूं फिर भी दिले मजबूर है सब कहते है तू आगे बढ़ जा वो तेरी नही रही पर एकतरफा प्यार करना भी तो एक गुरुर है !!
मैंने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को मैं अपनी किस्मत फिर भी आजमाऊंगा इस ज़मीन पर कोई खास है नही मेरा तू कुबूल करे मैं अपने गवाहों को आसमान से बुलाऊंगा एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा!!