Ishan krishana Sharma   (Ishan Krishana Bhardwaj)
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Joined 6 September 2019


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22 MAR 2021 AT 9:05

बातो में क्या रखा है जनाब,
बातें बीत जाती है समय की मझधार के साथ।
फिर भी कमबख्त मलाल इन्ही बातो का रहता है,
न जाने कब होंगी ये बातें पूरी,
अक्सर इन्ही बातो का इंतजार रहता है।

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10 AUG 2020 AT 16:33

कुछ रुखसत करो मोहब्बत से अपनी, तो आसमां ए चांद को
भी पता चले की गुरूर अब उसका भी टूटेगा क्यों की है अब धरती पर अस्क उसका

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9 AUG 2020 AT 16:41

दो प्याले

अश्कों से भरे ये दो प्याले,
रश्को से भरे ये दो प्याले ।।
मधुशाला में झलकते दो प्याले,
तो कभी उमंग से झूमे दो प्याले ।।

बंदिशों में बांधते दो प्याले ,
तो कभी नेनो से भीगते दो प्याले ।।
याद दिलाते है किसी को किसी का साथ निभाना ये दो प्याले ।।

हर दर्द दवा के दो प्याले,
हमदर्द नशीले दो प्याले ।।
करे गुस्ताखियां कभी कभी ,
जब उतरे नीचे गले से दो प्याले ।।

हसीन लम्हों के - सुनहरे कांच के कुछ प्याले,
तो कुछ बंद बोत्तलो में है छुपे प्याले ।।
कुछ आम से ये प्याले तो कुछ जाम के है प्याले ,
हर घड़ी दो घडी में कभी टूटते ये प्याले ।।

बचकर रहना इन प्यालो से, कहना है उन मतवालों से,
जो मानते इनको अपना दुख दर्द बाटने वाले ।।

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30 MAY 2020 AT 19:36

अल्फ़ाज़ इतने ही काफी थे उनके हमें झन्नुम में पहुंचाने के लिए कि अब उन्हें हम पर ऐतवार ही ना रहा

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27 MAY 2020 AT 1:35

¨ हो अगर तैयार खुद से, तो ये लौ जलनी चाहिए ,
तुम रहो या न रहो ये आरजू रहनी चाहिए।।

गम गर आये कही तो, बुदबुदाहट होनी चाहिए ,
हो अगर रोशन उजाला तो, चाँद भी ढलना चाहिए।।

न अकेला हो कभी तू , ऐतवार रखना चाहिए ,
हो अकेले भीड़ में तो हम-नबा बनना चाहिए।।

मजहब पर लगे पाबंदियां तो कोई पैरवी करने वाला चाहिए ,
हो अगर इल्तजा किसी से तो खुद पर भरोसा होना चाहिए।।

महफूज रहे हर कोई अपना ये दुआ होती रहना चाहिए ,
दिल की इबादतो का दस्तूर खुले आसमान में होना चाहिए।।

लौ अगर बुझने लगे तो मशाल जलनी चाहिए ,
जैसे भी हो बस ये आग जलनी चाहिए ।। ¨

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26 MAY 2020 AT 22:41

हुस्न के दो परवान तुम क्या चढे
कि हमें दिल-ए-आशिकी पर ही गुरूर हो गया

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25 MAY 2020 AT 18:27

दोस्त

दोस्त एक सोच है जो आप मे - हैं वसे
दोस्त कुछ वो भी है जो आपने - हैं चुने।
दोस्त वो विशाख है जिनसे आप - है चले
दोस्त वो दीदार भी जो आप में - है दिखे।

दोस्त वो उबाल भी, जो आप मे - है मिले,
दोस्त वो मशाल भी, जो आप मे - है जले।
दोस्त वो नव्ज़ भी है, जो आप मे - है चले।
दोस्त वो रंग भी, जो हर रंग में खिले।

दोस्त वो किताब भी, जिनसे हर सीख मिले।
दोस्त की छाओ में ही जीवन का आराम मिले।
दोस्तो की यारी कभी तो जश्न-ऐ-जहां लगे।
तो कभी इन्ही से ही गुरबत का इनाम मिले।

दोस्त वो युग भी है, जो सबने - है जिये।
दोस्त वो कलमा भी , जो सबने - है पढ़े।
दोस्त वो ताज भी, जो सबके सिर पर सजे।
दोस्त वो ही सही जो आपने है चुने।
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जब रहे हृदय में गीत हर मीत का,
तभी लगे जीवन खुशियों के संगीत सा।

♥️❣️❤️💓💚💛💜💞💟💗💖💗💙

अंत यही करता हूं इस कविता का:::::
जीवन में जब प्रीत मीत की साथ हो,
तो अनंतकाल तक इस परंपरा का सत्कार हो।






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10 MAY 2020 AT 0:06

A journey from seed to tree
(माँ- एक एहसास)
था मै नन्हा एक बीज माँ,
तब से सींचती आ रही तू।
भूख, प्यास हर लम्हा अपनी,
सब खुशियां मुझ पर बारती तू।

जब कुछ बड़ा हुआ ये बीज तो,
इसको पौध बनाती तू।
रोपण करके इस पौध पर,
अपनी छाप लगाती तू।

अपनी मृदा की खुश्बू देकर,
मुझको खुशहाल बनाती तू।
खुद दिनभर मेरी खातिर में,
अपना समय लगाती तू ।।
मेरे जीवन की खातिर,
अपना संपूर्ण आज लगाती तू।

जब पहली कोपल निकले पौध में तो,
मेरी नजर उतारती तू।
मेरे हर लम्हो को माँ,
आज संजोये जाती तू।

जब तनिक बड़ा हुआ ये पौध तो,
जीवन जीना सिखलाती तू।
हर संभव कोशिश करके ,
मेरे मार्गदर्शन में लग जाती तू।

गलत सही का भेद बताकर,
न्याय करना बतलाती तू।
शिक्षक बनकर मेरे जीवन मे,
ज्ञान ज्योति लौ जगाती तू।

मेरी खातिर तूने जीवन मे है बड़े त्याग किए,
एक बीज को पेड़ बनाकर तूने है नए प्राण दिए।



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3 MAY 2020 AT 18:02

युग निर्माण

मानवता की विश्वधरा पर कैसा कलयुग आया है ।
यहाँ कौन राम है और किसने रावण पर विजय ध्वज फेहराया है ।।
जहाँ कभी धर्म का महाभारत था, वही आज अधर्म का साया है ।
जो वीर पुरषो की धरा अमर थी , वही पाप मड़राया है ।।

तपोवन की अग्नि में जलकर जिसने देह वज्र बनाया था ।
ऐसे दधीच मुनि की वसुधा पर , कोरोना ने अपना पैर जमाया है ।।
निश्चित ही होगा इसका संघार समय पर , किन्तु प्रभु ये कैसी तेरी माया है ।
सतयुग की कोशिश करने वालो पर , ये कैसा आडम्बर और छलाबा है ।।

जिस यज्ञसेनी में होम - हवन की लौ जला करती थी ।
वही आज वीर सैनिको के रक्त-मुंडो  की माला है ।।
ये कैसा युग निर्माण हुआ है , जिसकी किसी को न अभिलाषा है ।
कौन प्रस्सन है इस मन्वन्तर में , कहाँ जश्नों का प्याला है ।।

रोता होगा तू भी कभी तो , या तेरी ही ये माया है ।
कौन भला है इतना निष्ठुर , जिसने तुझे ये कष्ट भोग लगाया है ।।
अब तो ईश्वर तू ही जाने , कौन तुझे पहचाना है ।
हर लो विपदा भू- मंडल की , या फिर नया संसार बसाना है ।।

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30 APR 2020 AT 17:00

जैसे फूल खिलते है मुरझाने के लिए,
पतझड़ में पत्ते गिरते है पेडो से,,
फिर वसंत में बहार बनकर आने के लिए।

उसी तरह लोग आते है दुनिया में ज़िंदगियों को खुशनुमा बनाने के लिए,
और छोड़ जाते है दुनिया को अपनी यादों में याद कराने के लिए।

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